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चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ ।
पाँचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवैकालिक वर्गीकृत ( धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २ ) 1
उक्त प्रकाशन-कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविंदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी ) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा । अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त हुआ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गूंज रहे हैं - “धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कोन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य दीपक जलता रहा ।
कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा ( विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया ।
आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जैन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंग सुत्ताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है :
प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत्, स्थान, समवाय-- ये प्रथम चार अंग हैं । दूसरे खण्ड में भगवती - पाँचवाँ अंग है ।
तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक —ये ६ अंग हैं ।
इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त प्रथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है ।
ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा ।
केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवैकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है; जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है ।
दशवैकालिक एवं उत्तराध्ययन भूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है । 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है ।
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