Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ प्रकाशकीय सन् १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है । 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे । सुझाव पर विचार हुआ । श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से थी गोपीचन्दजी चोपड़ा और मैं तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादूलालजी आछा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दूगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया । 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया । सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढ़े। __ आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पैर थामे और मुझ से कहा “जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कैसा सुन्दर शान्त वातावरण है।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे । (सरदारशहर) प्रतिक्रमण के बाद का समय था । पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिस्तर पर काँच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे । मैं उनके सामने बैठा था। वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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