Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 18
________________ இதததிகக*************************தமிதிமிதில் 卐 भेद थे उन्हें पाठांतर के रूप में दिया गया और आगमों को लिपिबद्ध करने का निर्णय लिया गया। इस तरह आगमों को ताड़पत्र पर लिपिबद्ध करने का ये महान कार्य वीर नि. सं. 980-993 में सम्पन्न हुआ । वर्तमान में जो आगम उपलब्ध हैं उनका अधिकांश भाग इसी समय में स्थिर हुआ ऐसा कहा जा सकता है। नंदीसूत्र में दी गई सूची से स्पष्ट होता है कि उक्त लेखन के बाद भी आगमों का ज्ञान कुछ न कुछ रूप में विलुप्त होता रहा है। भगवान महावीर के उपदेश विक्रम पूर्व 500 में मुखरित हुए, अतः किसी भी आगम की रचना उससे पहले की संभव नहीं है और अंतिम वाचना के आधार पर इनका लेखन विक्रम सं. 510-523 (वीर सं. 980-993) में हुआ। अतः यह समय मर्यादा ही आगम रचना का काल है, ऐसा मानना ही अधिक युक्तिसंगत जान पड़ता है। V इस काल मर्यादा को ध्यान में रखकर अब हम प्रस्तुत सूत्र प्रश्नव्याकरण पर विचार करेंगे। प्रश्नव्याकरण सूत्र द्वादशांगी में 10वाँ अंगसूत्र है। इसका स्थान अंगप्रविष्ट श्रुत में है । समवायांग सूत्र और नन्दी सूत्र तथा अनुयोगद्वार सूत्र में प्रश्नव्याकरण के लिए 'पण्हावागरणाई' के रूप में बहुवचन का प्रयोग है, जिसका संस्कृत रूप 'प्रश्नव्याकरणानि' होता है। वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण सूत्र के उपसंहार में एक वचन का ही प्रयोग है - ' पण्हावागरणे । ' तत्त्वार्थस्वोपज्ञभाष्य में भी 'प्रश्नव्याकरणम्' इस प्रकार एकवचनान्त का ही प्रयोग है। दिगम्बर परम्परा के धवला तथा राजवार्तिक आदि ग्रन्थों में भी एकवचनान्त 'पण्हवायरणं' ' प्रश्नव्याकरणम् ' प्रयोग ही प्रचलित है। 'स्थानांग ' सूत्र के दशम स्थान में प्रश्नव्याकरण का नाम 'पण्हावागरणदसा' बतलाया है, जिसका संस्कृत रूप टीकाकार आचार्य अभयदेव ने 'प्रश्नव्याकरणदशा' किया है। परन्तु यह नाम अन्यत्र अधिक प्रचलित नहीं हो पाया । प्रश्नव्याकरण यह समासयुक्त पद है। इसका अर्थ होता है प्रश्नों का व्याकरण अर्थात् निर्वचन उत्तर एवं निर्णय। यहाँ 'प्रश्न' शब्द सामान्य प्रश्न के अर्थ में नहीं है। इसमें किन प्रश्नों का व्याकरण किया गया था, इसका परिचय दिगम्बर परम्परा के धवला आदि ग्रंथों में एवं श्वेताम्बर परम्परा के स्थानांग, समवायांग और नन्दीसूत्र में मिलता है। 'प्रश्न' शब्द मंत्रविद्या एवं निमित्त शास्त्र आदि के विषयविशेष से सम्बन्ध रखता है। प्राचीन परम्परा के अनुसार विचित्र विद्यातिशय अर्थात् चमत्कारी प्रश्नों का व्याकरण जिस सूत्र में वर्णित है, वह प्रश्नव्याकरण है। वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण तो ऐसी कोई चर्चा उपलब्ध नहीं होती है। अतः यहाँ प्रश्नव्याकरण का यदि सामान्यतः विचार चर्चा रूप 'जिज्ञासा' अर्थ किया जाए तो अधिक उपयुक्त रहेगा । अहिंसा - हिंसा एवं सत्य-असत्य आदि धर्माधर्मरूप विषयों की चर्चा जिस सूत्र में है, वह प्रश्नव्याकरण है । इस दृष्टि से वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण सूत्र के नाम की सार्थकता परिलक्षित होती है। (१०) Jain Education International 卐 For Private & Personal Use Only பூமிமிமிதமிதிதி 5 5 5 5 5 5 5 5 * 5 6 57 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 52 ததததததததததததததததE www.jainelibrary.org

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