Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Uvasagdasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
४६८
गिमित्ताए वंदन-गमण-पदं
३३. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्त- जोइयं समखुरवालिहाण - समलिहियसिंग एहि जंबूणयामयकलावजुत्त-पइविट्ठिएहि रययामयघंटसुत्तरज्जुग-वरकंचणखचिय - नत्थपग्गहोग्गाहियएहि नीलुप्पलका मेल एहिं ' पवरगोणजुवाणएहि नाणामणिकणग घंटियाजालपरियं सुजायजुगजुत्तउज्जुग-पसत्यसुविरइयनिम्मियं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणप्पवेह, उववेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ||
वरं
३४. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा' 'सद्दालपुत्तेणं समणोवासएणं एवं वृत्ता समाणा तुटु - चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणणं वयणं पडणेंति, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त-जोइयं जाव' धम्मियं जाणवरं वट्टवेत्ता तमाणत्तियं • पच्चप्पिति ||
३५. तए णं सा अग्निमित्ता भारिया व्हाया कयवलिकम्मा कय- कोउय-मंगल पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई' मंगललाई वत्थाई पवर परिहिया ग्रप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा वेडियाचक्कवालपरिकिण्णा धम्मियं जाणप्पवरं दुरहइ, दुरुहिता पोलासपुरं नयरं मज्भंमज्भेणं निगच्छर, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियात्री जाणप्प
→
राम्रो पचोरुह, पच्चोरुहिता चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तिक्खुतो' प्रायाहिणपयाहिणं करेइ, करेता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासपणे णाइदूरे" ● सुस्सू माणा णमंसमाणा अभिमुहे विणणं • पंजलियडा" ठिझ्या चेव पज्जुवासइ ॥
३६. तए णं समणे भगवं महावीरे जाव" धम्मं परिकहेइ ||
अग्निमित्ताए तीसे य महइमहालियाए परिसाए
१. पुस्तकान्तरे यानवर्णको दृश्यते (वृ) ।
२. ० खइय ( ख ) ।
३. तत्थापन हो ० ( ख, ग ) 1
४. ° कयामल एहिं ( ख ); ० कयमालएहिं ( ग ) ।
५. सं०पा० - कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति ।
६. उवा० १२४७ ।
७. सं० पा० - व्हाया जाव पायच्छित्ता ।
Jain Education International
उवास दमाओ
८. सं० पा० - सुद्धावेसाई जाव महग्घा ।
६.
सं० पा० - तिक्खुत्तो जात्र वंदइ ।
१०
सं० पा०—जाइदूरे जाव पंजलियडा ।
११.
पंजलिउडा (ख, घ ) ।
१२. ओ० सू० ७१-७७ ।
For Private & Personal Use Only
अप्प
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242