Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Uvasagdasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 216
________________ वाणाए जाव धम्माणुओर्गाचिताए वाराज तं चैव जान नियधरं वावी व जाव विहरेज्जाह वासाई जाव देति वासुदेवपामोव जाव उदागए वासुदेवे धणुं परामुसद्द वेदो वासे जाव असीदं च समसहस्सा दलइतए विउला पगाढा जाव दुरहियासा विगोवइत्ता जाव पव्वइए विजया जान अवक्कमामो विणिम्यमाणी २ एवं वेजा व जाव कुलपुत्ता सई वा जाव अलभमाणा सई वा जाव जेणेव संता जाव भावा संताणं जाव सम्भूयाणं संते जाव निविणे संते जाव भावे १।५।३३ १।१३:३० ११६२२,२४ १।२।२३ १२६६४ संकामेत्ता जान महत्व पाहुड संकिए जाव कलुगसमावण्णे १।३।२४ संगयगयहसिय १२३४५ संचाएइ जाव वित्तिए ११५ ११८ संचाएंति करेत्तए ताहे दोच्चं पि अवक्कमति १९१४।१४, १५ संजत्तगाणं जान पछि १८२ संपरिवुडे एवं जाब बिहरद संभाग्यं जाव पारिता संभग्गं जाय सग्णिवइया संभग्ग तोरण जाब पासद संसारभब्बिग्गा जाव पव्वल संसारभउब्बिग्गे जाव पन्चयामि २३ कोट० सेयचामर भडचडगरेण जाय परिविता १|१|१८६ १२९१४ १११।२० १।२।१२ Jain Education International १११६/१७७ १।१६।२५० १८१९४ १।१६६४० १।११।२९ १।२।४७ १।१४:५३ ११ सकोरेंट जाव संयवर० १८१५७ कोमलदाम जान सेयवरचामराहि महया १२८१६१ गरमा १।१२।३२ १।१२।२१ १८६७६ १।१२।२६ १०८।१४७ १।१६।२६३ १।१६/२७८ १।१६।२७८ १।१६।१५३ For Private & Personal Use Only १।१।१५३ १९४ १९२० १२/१२ १/१६/१७६ वृत्ति १/८/१९४ १।१।१६२ ओ० सू० ५२ ११२४४ १।१।१४५ १।१३।२१ १।६।२१ १९१२१ ११६६१ १।३।२१ १।१।१३४ १।५।११७ १०४।११.१२ १२६८१ १।१२।३१ १।१२।१६ १|४|१२ १।१२।१६ १।१६।१७५ १।१६/२६२ १।१६४२६२ १।१६।२६२ १।१।१४५ १।१।१४५ १११।६६ ११८५७ १२८।५७ www.jainelibrary.org

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