Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Uvasagdasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 186
________________ दसम अज्झयणं (लेइयापिता) ६. तरस णं लेतियापियरस गाहावइरस फगुणी नाम भारिया हारथा- अहीण पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ।। महावीर-समवसरण-पदं १७. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । ८. परिसा निग्गया। ६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ ।। १०. तए णं से लेतियापिता गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे --"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुदि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नयरीए वहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिहिना संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" त महप्फलं खलु भो ! देवाणुपिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किंमग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए? एगस्स वि पारियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणप्पिया ! समणं भगव महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारमि सम्माणे मि कल्लाणं मंगलं देत चेइयं पज्जवासामि एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छिते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेण सावत्थि नरिमझमझेणं निग्गच्छइ,निग्गच्छिता जेणामेव कोट्रए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ णमंसइ, वंदित्ता गमंसित्ता णच्चासण्णे गाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ ।। ११. तए णं समणे भगवं महावीरे लेतियापियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालि याए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १२. परिसा पडिगया, राया य गए। लेतियापियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए णं से लेतियापिया गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस- - - - -- १. उवा० १११४ । ३. ओ० सू०७१-७७ । २. ओ० सू० ५३-६६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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