Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 413
________________ एगूणवीसइमं अज्झयणं (पुंडरीए) कंडरीयस्स मच्च-पदं ३६. तए णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तं पणीयं पाणभोयणं पाहारियरस समाणस्स अइजागरएण य अइभोय'-प्पसंगेण य से ग्राहारे नो सम्मं परिणमइ ।। ४०. तए णं तस्स कंडरीयस्स रण्णो तसि पाहारंसि अपरिणममाणंसि पुव्व रत्ता वरत्तकालसमयंसि सरीरगसि वेयणा पाउन्भूया --उज्जला विउला 'कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा ° दुरहियासा। पित्तज्जर-परिगय-सरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरइ ।। ४१. तए णं से कडरीए राया रज्जे य र? य अंते उरे य' माणुस्सएस य कामभोगेस मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववणे अट्टदुहवसट्टे अकामए अवसवसे कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयसि नेर इयत्ताए उववण्णे ॥ निगमण-पदं ४२. एवामेव समणाउसो' ! •जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पायरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं • पव्वइए समाणे पुणरवि माणस्सए कामभोए आसाएइ पत्थयइ पोहेइ अभिलसइ, से णं इह भवे चेव वहणं समणाण बहण समणीणं बहूणं सावयाणं वहूर्ण सावियाण य होलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं पागच्छइ बहणि दंडणाणि य मुंडणाणि य तज्जणाणि य तालणाणि य जाव' चाउरंतं संसार कतारं भुज्जो-भुज्जो ° अणुपरिट्टिस्सइ - जहा व से कंडरीए राया ।। पुंडरीयस्स पाराहणा-पदं ४३. तए णं से पंडरीए अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते बंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतिए दोच्चंपि चाउज्जामं धम्म पडिवज्जइ, छट्ठवखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झाय करेइ, बीयाए पोरिसीए झाण झियाइ, तइयाए पोरिसोए जाव उच्च-नीय-मज्झिमाई कलाइं घरसमूदाणस्स भिक्खायरियं अडमाणे सीयलुक्ख पाणभोयणं पडिगाहेइ, पडिगाहेत्ता प्रहापज्जत्तमित्ति कटु पडिनियत्तेइ, जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपाणं पडिदसेइ, पडिदसेत्ता थेरेहि भगवतेहि अब्भणुण्णाए समाणे अमुच्छिए अगिद्ध अगढिए अणज्झोववण्णे १. भोय (ख, ग) ५. सं. पा.-- समणाउसो जाव पव्वइए। २. परिणए (ख, ग, घ)। ६. सं. पा.--प्रासाएइ जाव प्रणपरियट्टिस्सइ। ३. स० पा०—विउला पगाढा जाव दुरहियासा। ७. ना०-१।३।२४ । ४. स० पा० - अंतेउरे य जाव अज्झोववण्णे । ८. ना० १११६.१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491