Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 418
________________ ३७० नायाधम्मकहाओ कालीदेवी-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं काली देवी चमरचंचाए रायहाणोए कालिवडेंसगभवणे कालंसि सीहासणसि चउहि सामाणियसाहस्सोहिं चउहिं महयरियाहिं' सपरिवाराहि, तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सोहि अण्णेहि य बहूहि कालिवडिसय-भवणवासोहि असुरकुमारेहि देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिवुडा महयाहय'- नट्ट-गीय-वाइयतंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवादियरवेणं दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणी • विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दोवं दीवं विउलेणं प्रोहिणा 'आभोएमाणी-आभोएमाणी" पासइ ।। कालीए भगवप्रो बंदण-पदं ११. एत्थं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिणिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुटु-चित्तमाणंदिया पीइमणा' 'परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण ° -हियया सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुतुत्ता पायपीढायो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयानो ओमुयइ, प्रोमुइत्ता तित्थगराभिमुही सत्तट्ठ पयाइ अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता वामं जाणं अंचेइ, अंचेता दाहिणं जाणं धरणियलंसि निहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियलंसि निवेसे इ', ईसि पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता कडग-तुडिय-थंभियानों भुयानो साहरइ, साहरित्ता करयल' 'परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं क्यासी-नमोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं जाव' सिद्धिगइनामधेज्ज ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं समणस्स भगवत्रो महावीरस्स जाव"सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स। वंदामि गं भगवंतं तत्थगयं इहगया, पासउ मे समणे भगवं महावीरे तत्थगए इहगयं ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सीहासणवरंसि पुरत्था भिमुहा निसण्णा ।। १२. तए णं तीसे कालीए देवीए इमेयारूवे५ प्रज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे ° समुप्पज्जित्था-सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्तए" १. मयहरियाहिं (क,ख,ग,घ); महरियाहि (क्व)। ८. सं० पा०-करयल जाव कटु । द्रष्टव्यम्-१।१६।१५६ सूत्रस्य पादटिप्पणम्। ६.१०. ओ० सू० २१ । २. वडेंसय (ख, ग)। ११. सं० पा०-इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । ३. सं० पाo-महयाहय जाव विहरई। १२. वंदित्ता (क, ख, ग, घ); सं० पाo-बंदि४. आभोएमाणी (क, ख, ग, घ)। त्तए जाव पज्जुवासित्तए । असौ पाठः 'राय५. जत्थ (क, घ); यत्थ (ग)। पसेणइय' सूत्रस्य वृत्यनुसारेण पूरितः । ६. सं० पा० पीइमणा जाव हियया । द्रष्टव्यम्-'रायपसेणइय' वृत्ति पृ० ५१,५२ । ७. निमेइ (क, ग)। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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