Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 463
________________ महत्वं जाव पाहू महत्यं जाव पाहुडं रायारिहं महत्वं जाव रायाभिसेय महरालाउयं जाव नेहावागाद माणुसगाई जाव विहरइ माया इ वा जाव सुहा मासाणं जाव दारियं माहव जाद वणीमगाण माहणी जाव निसिरद मित मित्त जाव चउत्थ मित्त जाव बहवे मित्रा जाव संपरिवुडा मित्तनाइ गणनायग जाव सद्धि महत्वले जाव महा १८१६ मध्याह्य जाव विहरद २|१|१० महालियं जावबंधिता अत्याह जान उदगंसि १ । १४७७ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि १।१।११० महिदीए जाव महासोक्से मित्तपक्खं जाव भरहो मुडावियं जाव सयमेव मुंडे जाव पव्वयाहि मुछिए जाव अभोववणे मेहे जाव सवणाए य गं जाव परमसुइभूए रज्जद जाव नो विष्पविषाय० रज्जं च जाव अंतेउरं रज्जे जाव अंतेउरे रज्जे य जाव अंतेउरे रज्जे य जाव वियंगेइ जाव अंगमगाइ रज्जेय जावियलेड रणो जायतहति रणो वा जाव एरिसए रयण जाव आभावी २१ Jain Education International १।१७/१६ १।१३।१५ १.५।१२:१।१२।३७ १।१।१३ २०१६/० ११५ १६ રાજા १।१६।१२४ १।१४:३६ १।१६/२४ १७।२२ १.७/१० ११७/३८ १/५/२० ११११८१ १।१।११८ १।१।१९१ १।१९।१४ ११६२६ १।१।१५४ १।१२।२२ १०१९०४६ PIREIRE १।१४।६० १८१५१:१।१६।१८७१।१२।२६ १/१४/२२ १।१४/२२ १।१६।३०३ १२६१५३ १।१८५६ For Private & Personal Use Only १५:२० १५:२० १।१०११६ १।५।३४ राय० सू० द १११४।७५ १|१|१०६ सू०२।२/७३ १।१६३८ १।११६७ सूय० २२/७ १।२।२० आधारचूला १।१६ १।१६।१४ १२१३८१ ११७६ १७२५.११ १।२।१२ १०१२८१ वृत्ति १।१।१४९ १।१।१०१ १।१२।२६ १।१।१०६ १।१।८१ १।१७।२५ १।१।१६ १।१४।२१ १।१।१६ १६१४१२१ १।१४/२१ १२६११०४ १२८१७ ११११६१: १।१८१५१ www.jainelibrary.org

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