Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 451
________________ ११११२६ ११११४८ ११११४८ ११११४८ १।१३६ वृत्ति करयलपरिग्गहियं जाव कटु करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता करयल बद्धावेइ करयल बद्धावेत्ता करयल वद्धावेत्ता करेइ जाव अडमाणीओ करेंति जाव पच्चुत्तरंति करेत्ता जाव विगयसोया करेमो तं चेव जाव मेमो करेह करेत्ता जाव पच्चप्पिणह करेह जाव पच्चप्पिणंति कल्लं कल्लं जाव विहरइ कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए कसप्पहारेहि य जाव लयाप्पहारेहि कारणेसु य जाव तहा कालगए जाव प्पहीणे कालोभासे जाव वेयणं कासे जोणिसूले जाव कोढे किण्हाण य जाव सुक्किलाण किण्हाणि य जाव सुक्किलाणि किण्होभासा जाव निउरंवभूया कभए एवं तं चेव जाव पवेसेइ रोहासज्जे कुडवा जाव एगदेसंसि के जाव गमणाए कोट्टपुडाण य जाव अण्णेसि कोटामारंसि सकम्म सं कोडंबिय जाव खिप्पामेव लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव उवट्ठवेंति कोडुबियपुरिसा जाव एवं कोडुंबियपुरिसा जाव ते वि तहेव कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति खंड जाब एडेह ११११३६ ११८१२६ १५५१२० १।८।१०५ १।१६।१५७ १।१४१४१,४२ १शक्षा१५ १११८।२७ १।१६।२८८ ।१।१२ १८४० शक्षा५१ १९५१२४ १।२।३३ १६२।६७ १२।४५ ११५।१० १११६।३२२ १२।६७ श१६।३० १११७१२२ १।१३।२० १७११३ १।८।१७४ ११७११७,१८ १११११११ १११७१२२ श७२५ १२।१४ ११९४८ १।१६।२८२ राय० सू०६ ११८५१ ११।२४ ११५१२४ १॥२॥३३ १४२१३३ १२२।३३ १११११६ ११२८४ वृत्ति १।१३।२८ १।१७।२३ १।१७।२३ ओ० सू०४ १।८१७३ १६७।१५,१६ १११११०७ २७७ ११८।५२ १११५७ ११११११७ १३१६६२ १११६७८ उवा० ११४७,११८१५१ १११॥६ ११११११६ १।१२३ १.१६७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491