Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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प्रकाशकीय
यह बताते हुए अत्यन्त प्रसन्नता होती है कि श्रुत-सेवा के महान् ऐतिहासिक कार्य में हम अपनी लगभग आधी मंजिल पार कर चुके हैं। अब तक १८ आगम ग्रन्थ चित्रों सहित हिन्दी - अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रकाशित कर चुके हैं। इस वर्ष दो आगम ग्रन्थ श्री भगवती सूत्र भाग - १ तथा तीन छेद सूत्र का प्रकाशन हो रहा है।
श्री भगवती सूत्र जैन तत्त्वज्ञान का महासागर है। इसमें अमूल्य ज्ञान की एक से एक दीप्तिमान मणियाँ हैं।
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दूसरे ग्रन्थ में तीन छेद सूत्रों का प्रकाशन किया गया है। छेद सूत्र जैन श्रमणों के आचार का फ्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आगम है। जब तक इन सूत्रों का अर्थ सहित अध्ययन नहीं किया जाय, तब तक 5 श्रमण अग्रणी या सिंघाड़ा प्रमुख बनकर विचरण भी नहीं कर सकता। इसे श्रमण धर्म की आचार संहिता या संविधान पुस्तक भी कहा जा सकता है। ये दोनों ही आगम अपने-अपने स्थान पर अत्यधिक फ महत्त्वपूर्ण हैं। अस्तु
आगमों के बहुत ही जिम्मेदारीपूर्ण सम्पादन- कार्य में पूज्य गुरुदेव के अन्तेवासी श्री वरुण मुनि जी म. बड़ी तल्लीनता के साथ जुटे हुए हैं। साथ ही विद्वान् सम्पादक श्रीचन्द
'सुराना 'सरस', श्री सुरेन्द्र
जी बोथरा तथा जैन आगमों के गहन अभ्यासी स्वाध्यायी सुश्रावक श्री राजकुमार जी जैन का भी हमें पूर्ण सहयोग प्राप्त रहा है। हम आप सबके बहुत-बहुत आभारी हैं।
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इन आगमों के प्रकाशन का हमारा एक ही लक्ष्य है, एक ही उद्देश्य है कि जिनशासन की आधारभूत जिनवाणी का घर -घर में प्रचार-प्रसार हो और प्रत्येक साधु-सतियाँ तथा विद्वान् आगम- प्रेमी सद्गृहस्थ इनका अधिकाधिक लाभ उठायें और स्वाध्यायशील बनें। आइए आप भी हमारे उद्देश्यों को सफल बनाने में आगम स्वाध्याय का सत्संकल्प लेवें। धन्यवाद !
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उत्तर भारतीय प्रवर्त्तक पूज्य गुरुदेव परम श्रद्धेय भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. की हार्दिक इच्छा 5 और प्रबल प्रेरणा से उत्तर भारतीय प्रवर्त्तक श्री अमर मुनि जी म. ने श्रुत- -सेवा का यह महान् प्रारम्भ किया और वे निरन्तर एकचित्त, एकलक्ष्य होकर इस कार्य सम्पादन में जुटे हुए हैं। हमें अत्यन्त प्रसन्नता है कि पूज्य गुरुदेवों के आशीर्वाद से तथा उनके प्रति असीम भक्तिभाव से प्रेरित होकर फ्र सहयोगदाता, उदार सज्जन सहयोग का हाथ बढ़ा रहे हैं और हमें उत्साहित करते हैं कि इस महान् ज्ञान यज्ञ की ज्योति जलती रहनी चाहिए। हम सभी सहयोगी बन्धुओं के प्रति हार्दिक आभार प्रदर्शन करते हुए इस वर्ष में दोनों आगम ग्रन्थ पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं।
कार्य
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महेन्द्रकुमार जैन
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अध्यक्ष
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पद्म प्रकाशन
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