Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 14
________________ शतक १० उद्देशक ३. पृ० १९३-१९५. राजगृह नगर. - देव आत्मशक्तिथी चार पांच देवावासोने उल्लंघे १–अल्पर्धिक देव महद्धिक देवनी वधे थईने जाय!-समर्द्धिक देव समर्द्धिक देवनी बच्चोवञ्च थईने जाय!-मोह पमाडीने जई शके के ते सिवाय जाय !-मोह पमाडीने जाय के जईने मोह पमाडे-महद्धिक देव अल्पर्द्धिक देवनी वये यईने जाय !-महर्द्धिक देव अस्पर्द्धिकने मोह पमाडीने जाय के ते सिवाय जाय ?-महर्द्धिक देव मोह पमाडीने जाय के जईने मोह पमाडे?-असुरकुमार देवसंबन्धे पूर्वोक्त प्रश्नो.-अल्पर्द्धिक देव महर्द्धिक देवीनी वच्चे ? थईने जाय?-समर्द्धिक देव समद्धिक देवीनी वचे थईने जाय-अल्पर्दिक देवी महदिक देवनी वच्चे थईने जाय?-महर्द्धिक वैमानिक देवी अल्पर्धिक वैमानिक देवनी बचे थईने जाय ?-अल्पर्धिक देवी महद्धिक देवीनी वधे थईने जाय ! -एम समर्दिक देवीनो समर्दिक देवीनी साथे आलापक.-महद्धिक वैमानिक देवीनो अल्पद्धिक देवीनी साथे आलापक.-महर्द्धिक देवी मोह पमाडीने जाय के ते सिवाय जाय?-दोडता घोडाने 'खु खु' शब्द केम थाय छे ?-भाषाना बार प्रकार. __ शतक १० उद्देशक ४. पृ० १९६-१९८. - वाणिज्यप्राम. दूतिपलाश चैत्य.-श्यामहस्ती अनगार-चमरेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छ ?-प्रायस्त्रिंशक देवोनो संबन्ध.-बलीन्दने त्रायस्त्रिंशक देवो.-तेनो हेतु:-घरणेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो.-शकेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो.-ईशानेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो.-सनत्कुमारने त्रायस्त्रिंशक देवो. शतक १० उद्देशक ५. पृ.१९९-२०४. राजगृह नगर.-गुणशील चैत्य.-चमरेन्द्रने अग्रमहिषीओ.-अग्रमहिषीओनो परिवार.-चमरेन्द्र पोतानी सभामा देवीओ साथे भोगो भोगववा समर्थ छे! हेतु.-चरेन्द्रना सोमलोकपालने पट्टराज्ञीओ.-सोमलोकपाल पोतानी सभामां देवीओ साथे भोग भोगववा समर्थं छे ?-यमने अप्रमहिषीओ.बलीन्दने अग्रमहिषीओ. बलीन्द्रना लोकपाल सोमने अग्रमहिषीओ.-धरणेन्द्रने अनमहिषीओ-धरणना लोकपाल कालवालने अग्रमहिषीओ.-भूतानेन्द्रने छाग्रमहिषीओ.--भूतानेन्द्रना लोकपालने अप्रमहिषीओ.-कालेन्द्रने अप्रमहिषीओ.-सुरूपेन्द्रने अग्रमहिषीओ.-पूर्णभद्रने अपमहिषीओ.-राक्षसना इन्द्र भीमने अप्रमहिपीओ.--ए प्रमाणे किन्नरेन्द्र, सत्पुरुषेन्द्र, अतिकायेन्द्र अने गीतरतीन्द्रने अप्रमहिधीओ.-चन्द्र, अंगारप्रह अने शमने अप्रमहिधीमो. शक सुमो सभामां देवीओ साथे भोग भोगववा समर्थ छे ?--शकना लोकपाल सोम, देशानेन्द्र अने ईशानना लोकपाल सोमने अप्रमहिषीओ. शतक १० उद्देशक ६. पृ. २०५. शकनी सुधर्मा सभा क्या है।-शक केवी ऋद्धि अने केवा सुखवाळो छ ? शतक १० उद्देशक ७-३४. पृ० २०६. 'अव्यावीश अन्तद्वीपो. शतक १. पृ. २०७-२१३. उत्पल एकजीवी छे के अनेकजीवी छे?-जीवो उत्पलमा क्याथी आवीने उपजे छे?-एक समयमा केटला उपजे?-प्रतिरामग काढवामां बाने तो रयारे खाली थाय ?-शरीरनी अवगाहना,-ज्ञानावरणीयादि कर्मना वृन्धक.-आयुष कर्मना बन्धक.-शानवरणीगादि कर्मना वेदक.-ज्ञानावरणादि कर्गना उदयवादा.- उदीरक के अनुदीरक?-कृष्णादिलेश्यावाळा.-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि के मिथ्रदृष्टि?-ज्ञानी के अज्ञानी ?-मनोयोगी, वचनयोगी के काययोगी?-साकारउपयोगी के अनाकारउपयोगी-शरीरना वर्णादि.-उच्छ्वासक निःश्वासक के अनुच्छ्रासकनिःश्वासक? आहारक के अनाहारक! सर्व विरति, अविरति के देशविरति!-सक्रिय के अक्रिय :-सप्तविधवन्धक के अष्टविधबन्धक-आहारादि संज्ञाओ.-कषाय.-वेद.घेदना बन्धक.-संज्ञी के असंही-सेन्द्रिय के अनिन्द्रिय !-उत्पलनो जीव उत्पलपणे क्यासुधी रहे !-उत्पलनो जीव पृथिवीमा आवी उत्पलमा आवे त्यारे केटलो काल गमनागमन करे-उत्पलनो जीव बनस्पतिमा जईने पुनः उत्पलमा आवे त्यारे केटलो काळ गमनागमन करे-उत्पलनो जीव बेइन्दियमा जईने उत्पलपणे उपजे त्यारे केटलो काळ जाय !-पञ्चेन्द्रिय तिर्यच थईने उत्पलमा आवे त्यारे केटलो काळ जाय!-आहार.-आयुष.-समुद्घात-च्यवन.-सर्व जीवोनुं उत्पलपणे उपजq. शतक ११ उद्देशक २. पृ० २१४. शालूक. शतक ११ उद्देशक ३. पृ० २१५. पलाश. शतक ११ उद्देशक ४. पृ. २१६. कुंभिक. शतक ११ उद्देशक ५. पृ० २१७. नाडीक. शतक ११ उद्देशक ६. पृ. २१८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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