Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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बननी प्राप्ति-चारित्रनो खीकार.-अवधिज्ञाननी उत्पत्ति.-लेश्या.-ज्ञान.-मनोयोगी इत्यादि.-संघयण.-संस्थान.-उंचाई.-आयुष.-वेद.पुरुषवेदादि.-कषाय.-संज्वलनक्रोधादि.-अध्यवसायो.-प्रशस्त अध्यवसाय.--नारक, तियेच, देव अने मनुष्यभवोथी मुक्ति-अन्तानुबंध्यादिकषायनो क्षय. अश्रुखा केवली धर्मोपदेश न करे.-प्रवज्या न आपे.-सिद्ध थाय.-ऊर्च, अधो भने तिर्यग्लोकमा होय.-ऊर्ध्वलोकर्मा इस वैताव्यमा होय.अधोलोक प्रामादिमा होय.-तिर्यग्लोकमां पंदर कर्मभूमिमा होय. ते एक समये केटला होय ?केवल्यादि पासेथी धर्म सांभळीने कोई धर्मने पामे अने, कोई धर्मने न पामे इत्यादि.-केवल्यादि पासेथी धर्म श्रवण करीने सम्यग्दर्शनादि युक्त जीवने अवधिज्ञानादिनी प्राप्ति.-लेश्या.-ज्ञान.-योग.-वेद.उपशांतवेद के क्षीणवेद होय?-स्त्रीवेदादि.-सकषायी के अकषायी ?-उपशांत के क्षीणकषायी?-केटला कषाय होय!-अध्यवसायो.-धर्मोपदेश.-प्रवज्या आपे.-तेना शिष्यो पण प्रवज्या आपे.-प्रशिष्यो पण प्रवज्या आपे.-सिद्ध थाय.-शिष्यो पण सिद्ध थाय.-प्रशिष्यो पण सिद्ध थाय.शुं ते ऊर्ध्वलोकमां होय इत्यादि.-एक समयमा संख्या.
__ शतक ९ उद्देशक ३२. पृ. १३८-१६१. वाणिज्यग्राम.-गांगेयना प्रश्नो.-नैरयिको सान्तर के निरंतर उत्पन्न थाय छे? असुरकुमार.-पृथ्वीकायिको.-बेइंद्रियो यावत् वैमानिको. नैरयिको अने यावत् स्तनितकुमारर्नु सान्तर भने निरन्तर च्यवन.-पृथ्वीकायिकादिनु सान्तर के निरंतर च्यवन.-बेइन्द्रियादि.-ज्योतिषिक-प्रवेशनक.नैरयिक प्रवेशनक.-एक नरयिक.-बे नैरयिक.-त्रण नैरयिको.-एकसंयोगी सात विकल्पो.-द्विकसंयोगी बेतालीश विकल्पो.-त्रिकसंयोगी पांत्रीश विकल्पो.-चार नैरयिको.-द्विकसंयोगी सठ विकल्पो.-त्रिकसंयोगी विकल्पो.-चतुःसंयोगी पांत्रीश विकल्पो.-पांच नैरयिक.-द्विकसंयोगी ८५ विक
पो.-त्रिकसंयोगी २१० विकल्पो.-चतुःसंयोगी १४० विकल्पो.-पंचसंयोगी २१ विकल्पो.-छ नैरयिको.-द्विकसंयोगी १०५ विकल्पो.-त्रिकसंयोगी विकल्पो.--चतुःसंयोग अने पंचसंयोग.-छ संयोगी विकल्पो.-सात नैरयिको.-द्विकसंयोगी विकल्पो.-त्रिकसंयोग, चतुःसंयोग, पंचसंयोग भने छ.. संयोग.--सप्तसंयोगी विकल्पो.-आठ नैरयिको.-द्विकसंयोगी विकल्पो.-यावत् षट्कसंयोगी विकल्पो.-सप्तसंयोगी विकल्पो.-नव नेरयिको.-द्विक संयोगी विकल्पो.-दश नैरयिको.-द्विकसंयोगादि विकल्पो.-संख्यात नैरयिको.-द्विकसंयोगी विकल्पो.-त्रिकसंयोगी विकल्पो.-असंख्यात नैरयिको.द्विकसंयोगादि विकल्पो.-उत्कृष्ट प्रवेशनक.-द्विकसंयोग.-त्रिकसंयोग.-चतुःसंयोग.-पंचसंयोग.-पटकसंयोग.-सप्तसंयोग. नैरयिकप्रवेशनकअल्पवहुल.--तिर्यश्चप्रवेशनक प्रकार.-एक तिर्यचयोनिक.-बेतियंचयोनिक.-यावत् असंख्याता तिर्यचो. उत्कृष्ट तिर्यंचयोनिकप्रवेशनक.-तियंचयोनिकप्रवेशनकाल्पबहुत्व.-एक मनुष्य.-बे मनुष्यो.-दश मनुष्यो.-संख्याता मनुष्यो.-असंख्याता मनुष्यो.-उत्कृष्ट मनुष्यप्रवेशनक.--मनुष्यप्रवेशनकअल्पबहुत्व.-देव प्रवेशनकना प्रकार.-एक देव.-बे देवो.-उत्कृष्ट देवप्रवेशनक, देवप्रवेशनकनुं अल्पबहुत्व.-सर्व प्रवेशनक- अल्पबहुत्व.-नैरयि. कोनी सान्तर अने निरन्तर उत्पाद अने उद्वर्तना.-विद्यमान नैरयिको उत्पन्न थाय के अविद्यमान सद् नैरयिको उद्वर्ते छे के असद् !-सद् नैरयिकादिना उत्पाद अने उद्वर्तना संबन्धे प्रश्न.-सद् नैरयिकादिना उत्पाद अने उद्वर्तनानो हेतु.-आप स्वयं जाणो छो के अस्वयं जाणो छो?-नैरयिको खयं उपजे छे के अवयं उपजे छ ?-असुरकुमारो.-पृथिवीकायिको.-गांगेय भगवान् महावीरने सर्वज्ञ माने छे, अने दीक्षा ग्रहण करी निर्वाण पामे छे.
शतक ९ उद्देशक ३३. पृ० १६२-१८४. ब्राह्मणकुंडग्राम.-ऋषभदत्त.-देवानंदा.-महावीरखामी समोसर्या.–बहुशालक चैत्य.-देवानंदाना स्तनमाथी दूधनी धार केम छूटी ?-पुत्रना स्नेहथी दूधनी धार छूटी.-ऋषभदत्ते प्रवज्या लीधी.-देवानंदानी प्रव्रज्या. क्षत्रियकुंडग्राम.--जमालिनुं वर्णन.-ब्राह्मणकुंडग्राम.-बहुशाल चैत्य.जमालि भगवंत महावीरनो उपदेश सांभळी दीक्षा ग्रहण करवा इच्छे छे.-मातापिताने पोतानी इच्छानुं निवेदन.-जमालिनी मातानो शोक.-मातापिता अने जमालीनो संवाद.-मातापिता.-जीवित चपल छे, मनुष्य सबंधी काम भोगो अशुचि अने अशाश्वत छे इत्यादि जमालिनु कथन.-हिरण्यादिनो उपभोग कर इत्यादि मातापितानुं कथन.-हिरण्यादि अनित्य अने अशाश्वत छे एवं जमालिनु कथन.-निम्रन्थ प्रवचन सत्य छ पण दुष्कर छे एवं मातापितार्नु कथन.-कायरने दुष्कर छे, पण धीर पुरुषने दुष्कर नथी एवं जमालिनु कथन.-दीक्षानी अनुमति.-जमालिनी दीक्षा.-श्रावस्ती नगरी.कोष्ठक चैत्य-चंपानगरी.-पूर्णभद्र चैत्य-निर्ग्रन्ध प्रवचन उपर जमालिनी अश्रद्धा.-क्रियमाण अकृत छे एवो जमालिनो मिथ्यावाद.-भगवान् गौतमना जमालिने प्रश्नो.--लोक शाश्वत छे के अशाश्वत-जीव शाश्वत छे के अशाश्वत?-उत्तर आपवानुं जमालिनु असामर्थ्य.-भगवान् महावीरना उत्तरो.-लोक शाश्वत छे.-लोक अशाश्वत छ.-जीव शाश्वत छे.--जीव अशाश्वत छे.-किल्विषिक देवनी स्थिति.-किल्बिपिक देवोनो निवास.-कया कर्मथी किल्बिषिकदेवपणे उपजे?-किल्बिषिक देवो मरीने क्या उपजे ?
शतक ९ उद्देशक ३४. पृ. १८५-१८७. पुरुषने हणतो पुरुषने हणे के नोपुरूपने हणे?-पुरुष अने नोपुरुषनो घात करे.-अश्वने हणतो अश्वने हणे के नोअश्वोने हणे?-अमुक प्रसने हणतो तेने हणे के बीजा त्रसोने पण हणे?-ऋषिने हणतो ऋषिनेज हणे के बीजाने हणे?-पुरुषने हणनार पुरुपना वैरथी बन्धाय के नोपुरुषना वैरथी पण बन्धाय?-ऋषिना वैरथी के नोऋषिना वैरधी बन्धाय?-पृथिवीकायिक पृथिवीकायिकने श्वासोच्छ्रासरूपे ग्रहण करे अने मूके-अप्कायिक पृथिवीकायिकने ग्रहण करे?-अप्कायिक अप्कायिकने ग्रहण करे अने मुके ?-तेजःकायिक पृथिवीकायादिकने ग्रहण करे अने मूके?-पृथिवीकायिकादिकने कियाओ.--वायुकायिकने क्रिया.
शतक १० उद्देशक १. पृ० १८८-१९०. पूर्वोदि दिशाओ.-दिशाओना प्रकार,-दिशाओना दश नाम.-ऐन्द्री दिशा जीवरूप छे-इत्यादि प्रश्न.-आयी दिशा.-याम्या दिशा.-शरीरना प्रकार.-औदारिक शरीरना प्रकार.
शतक १० उद्देशक २. पृ. १९१-१९२.
कषायभावमा रहेला साधुने ऐर्यापथिकी क्रिया के सांपरायिकी किया लागे?-अकपायभावमा वर्तता साधुने ऐयोपथिकी के सांपरायिकी क्रिया - ऐयोपथिकी अथवा सांपरायिकी क्रियानो हेतु ? -योनि.-वेदनाना प्रकार. नैरयिकोने वेदना.-भिक्षुप्रतिमा.-आराधना.
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