Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 416
________________ दसमं ठाणं ८२३ संगहणी-गाहा मिगसि रमद्दा पुस्सो, तिण्णि य पुवाई मूलमस्सेसा । हत्थो चित्ता य तहा, दस विद्धिकराई णाणस्स ॥१॥ कुलकोडि-पदं १७१. चउप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुह सतसहस्सा पण्णत्ता। १७२. उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दस जाति-कुलकोडि-जोणिपमुह सतसहस्सा पण्णत्ता ।। पावकम्म-पदं १७३. जीवा णं दसठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा--पढमसमयएगिदियणिव्वत्तिए', 'अपढमसमयएगिदियणिवत्तिए, पढमसमयबेइंदियणिव्वत्तिए, अपढमसमयबेइंदियणिव्वत्तिए, पढ़मसमयतेइंदिर्याणव्वत्तिए, अपढमसमयतेइंदियणिव्वत्तिए, पढमसमयचरिदियणिव्वत्तिए, अपढमसमयचरिदियणिव्वत्तिए, पढमसमयपंचिदियणि व्वत्तिए, अपढमसमय पचिदियणिव्वत्तिए। एवं-चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव ।। पोग्गल-पदं १७४. दसपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता। १७५. दसपएसोगाढा पोरगला अणंता पण्णत्ता ॥ १७६. दससमयठितीया पोग्गला अणंता पण्णता ।। १७७. दसगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। १७८. एवं वण्णेहिं गंधेहिं रसेहिं फासेहिं दसगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ।। ग्रन्थ-परिमाण कुल अक्षर १६५४४८ अनुष्टुप् श्लोक ५१७०, अक्षर १. वुद्धिकराई (क, ग); विड्डिकराई (ख)। नास्यार्थोप्यत्र घटते । तेन प्रतीयते लिपि२. सं० पा०-पढमसमयएगिदिर्याणवत्तिए जाव प्रमादोसो जातः । अस्य स्थाने 'जाव पचिं. पंचिदिणिव्वत्तिए; पाठसंशोधनप्रयुक्तादर्शषु । दिय णिव्वत्तिए'। 'जाव फासिदित निव्वत्तिते' इति पाठो ३. समतठितीता (क, ख, ग)। लभ्यते, किन्तु वृत्तौ नेष व्याख्यातोस्ति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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