Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२५
४१४३५,४३६
२११५३ ३७६
३१५१५,५१६
१२२३ ४।३-११
२०१५ ३१५३२
२०२१ २१४४३
२।३६८
एवं देवंधगारे देवुज्जोते देवसणिवाते देवुक्कलिताते देवकहकहते
४।४३७-४४१ एवं देवाणं भाणियव्वं
२।१५४ एवं देवुक्कलिया देवकहकहए
३७७,७८ एवं दोग्ग तिगामिणीओ सोगतिगामिणीओ संकिलिट्ठाओ असंकिलिट्ठाओ अमणुण्णाओ मणुण्णाओ अविसुद्धाओ विसुद्धाओ अपसत्थाओ पसत्थाओ सीतलुक्खाओ णि ण्हाओ ३१५१७,५१८ एवं पडिसडंति विद्धसंति
२।२२४,२२५ एवं परिणते जाव परक्कमे
५१३६-४४ एवं परिग्गहिया वि
२०१६ एवं पासे वि
३१५३३ एवं पुट्टियावि
२०२२ एवं पुन्वफग्गुणी उत्तराफग्गुणी
२।४४५,४४६ एवं फुरित्ताणं एवं फुडित्ताणं एवं संवट्टइत्ताणं एवं णिवट्टतित्ताणं
२।३६६-४०२ एवं बलसंपण्णण य रूवसंपण्णण य बलसंपण्णण य जयसंपण्णेण य सम्वत्थ पुरिसजाया पडिवक्खो
४१४७७,४७८ एवं बलेण य सुतेण य एवं बलेण य सीलेण य एवं बलेण य चरित्तेण य
४।४०२-४०४ एवं मणुस्साणवि एवं मोहे मुढा
२।४२२,४२३ एवं मोहे मूढा
३३१७८,१७६ एवं रज्जति मुच्छंति गिझंति अज्झो
५७-१० एवं रूवाई गंधाइरसाई फासाई एक्केक छ-छ आलावगा भाणियव्वा
३१२६१-३१४ एवं रूवाइपास गंधाइ अग्घाति रसाई आसादेति फासाइ पडिसंवेदेति
२।२०२-२०५ एवं रुवेण य सीलेण य एवं रुवेण य चरितण य .
४१४०६,४०७ एवं वइक्कमाणं अतिचाराणं अणायाराणं ३१४४५-४४७ एवं वंदति णाममेगे णो वंदावेइ
४।४७२,४७३
४१४०१
२१४०१ ३।१७६
ववज्जति
३।२८५-२६०२।२०२-२०५
२।२०१
४.४०५
३१४४४
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