Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 439
________________ एव एव एवं एवं एवं अग्गिच्चादि एवं रिट्ठावि एवं अजोगभवत्थकेवलणाणे वि एवं अणुण्णवेत्तए उवाइणित्तए एवं अज्जरुवे अज्जमणे अज्जसंकप्पे अज्जपणे अज्जदिट्ठी अज्जसीलाचारे अज्जववहारे अज्जपरक्कमे अज्जवित्ती अज्जजाती अज्जभासी अज्जओभासी अज्जसेवी अज्जपरियाए अज्जपरियाले एवं सत्तरस्स आलावगा जहा दीणेण भणिया तहा अज्जेण वि भाणियव्वा एवं अभिहितमिच्छादंसणे वि एवं असंकिले से वि एवमतिक्कमे वि astra वि अइयारे वि अणायारे वि एवं असंयमो वि भाषितव्वो एवं आगंता णामेगे सुमणे भवति ३ एमीगे सु३ एस्सामीति एगे सुमणे भवति एव उवसंपया एवं विजहणा एवं एएवं अभिलावेणं- १. चिट्टित्त न चिट्ठित्ता (क) । २. पिसितता ( क, ख ) । ३. दत्ता श्रदत्ता ( क ) 1 ४. पिवता ( क ग ) पिता ( क्व ) । २० Jain Education International २४६२ ३१३२२ ३।४७५ ६।३६ ६१३६,३७ २/६१ ३१४२३,४२४ ४२१३-२२७ २२८५ ३।४३१-४४३ १०/२३ संग्रहणी - गाहा संता य अगंता य आगंता खलु तहा अणागंता । चिट्ठित्तमचिट्ठित्ता, णिसितित्ता' चेव णो चेव ॥ १ ॥ हंता य अहंता य, विदित्ता खलु तहा अछिदित्ता । बूतित्ता अबुत्तिता, भासित्ता चेव णो चेव ॥२॥ 'दच्चा य अदच्चा " य, भुंजित्ता खलु तहा अभुंजित्ता लभित्ता अलभित्ता, पिबत्ता' चेव णो चेव || ३ || ३।१६५-१६७ ३/३५३,३५४ For Private & Personal Use Only २४६१ ३३२१ ३१४७४ ६३८ ६१३५ २६० ३,४२२ ४११६६-२१० २।८४ ३१४३८ १०२२ ३१८६-१९१ ३।३५१ www.jainelibrary.org

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