Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ 五$ $$ $ $$ $ $$ $$ $$$ $$$ $$ $ प्रस्तावना प्रसिद्ध आगम भाष्यकार आचार्य संघदासगणि ने लिखा है-“तीर्थंकरों और केवलज्ञानियों के ज्ञान में किसी प्रकार का भेद नहीं होता। जैसा केवलज्ञान और जैसा धर्म-तत्त्व-निरूपण भगवान ऋषभदेव ने किया, वैसा ही श्रमण भगवान महावीर ने किया है। अर्थ (भाव) रूप में सभी तीर्थंकरों का उपदेश एक ही समान होता है, किन्तु जो भेद होता है, वह सूत्र-रचनाकार गणधरों व स्थविरों की शैली के कारण ही होता है। गणधर केवल द्वादशांगी की रचना करते हैं। अंग बाह्य आगमों की रचना करने वाले स्थविर होते हैं। अतः अंग बाह्य आगमों की प्रामाणिकता अंग आगमों के आधार पर ही मानी जाती है।" प्रस्तुत श्री स्थानांगसूत्र ग्यारह अंगसूत्रों में तीसरा अंगसूत्र है। नन्दीसूत्र आदि में स्थानांग का जो वर्णन एवं विषय-वस्तु का जैसा निरूपण है, उस अनुसार तो आज इसका स्वरूप काफी परिवर्तित हो चुका है। इसके अनेक कारणों में से मुख्य कारण हैं भगवान महावीर के पश्चात् पूर्व भारत में जहाँ श्रमणों का विहार होता था वहाँ एक के बाद एक अनेक लम्बे दुष्कालों का पड़ना। दुष्कालों के कारण श्रमणों को शुद्ध भिक्षा की उपलब्धि दुर्लभ हो गई, इस कारण अनेक बहुश्रुत श्रमण संथारा आदि करके देह त्याग कर गये। अनेक द्वादशांगधर श्रमण अन्यत्र विहार कर गये। परीषहों के कारण काल प्रभाव से स्मरण शक्ति की दुर्बलता, शिष्य परम्परा का विच्छेद और आगम का ज्ञान देने वाले बहुश्रुतों का अभाव आदि अनेक कारणों से श्रुतज्ञान की बहुत-सी अमूल्य ज्ञान निधि क्षीण होती चली गई। जो श्रुतज्ञानी श्रमण बचे थे, उनका विहार दूर-दूर प्रदेशों में होने के कारण उनमें वाचना का भेद, उन प्रदेशों की भाषा के उच्चारण आदि में अन्तर के कारण थोड़ा-बहुत शब्दों का उच्चारण भेद और लौकिक रीति-रिवाजों, लोकाचारों आदि की भिन्नता के कारण अर्थ-परम्परा में भी यत्किंचित् भिन्नता आना स्वाभाविक था। इस कारण विलुप्त होते श्रुतज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए आगमज्ञ स्थविर श्रमणों ने समय-समय पर साधु-सम्मेलन बुलाकर परस्पर आगम पाठों का मिलान करने के लिए सम्मेलन (वाचनाएँ) किये और श्रुतज्ञान को यथाशक्ति, यथामति सुरक्षित रखने का भरसक प्रयत्न किया। आगमों की पाँच वाचनाएँ भगवान महावीर निर्वाण से १६० वर्ष बाद (वि. पूर्व ३१० या ईसा पूर्व ३१६) के लगभग दशपूर्वधर आर्य स्थूलभद्र के नेतृत्व में पाटलिपुत्र में प्रथम आगम वाचना हुई। आगम संकलन की दूसरी वाचना वीर निर्वाण के ३०० वर्ष पश्चात् सम्राट् खारवेल के प्रयत्नों से कुमारगिरि पर्वत (उड़ीसा) पर आर्य सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध के सान्निध्य में तथा तीसरी वाचना ८२७ से ८४० वर्ष के मध्य मथुरा में आर्य स्कन्दिल के नेतृत्व में सम्पन्न हुई। उसी समय दक्षिण-पश्चिम भारत में विचरने वाले श्रमणों का एक विशाल सम्मेलन वल्लभी (सौराष्ट्र) में आर्य नागार्जुन के नेतृत्व (7) 155 )))) ))) ) )))))))) )) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 696