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म स्व. पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. सा. का जो आशीर्वाद मुझे -
___ मिला था, वह आज भी मेरा सम्बल बना हुआ है और उन्हीं की प्रेरणा और प्रोत्साहन का बल मुझे ॐ इस श्रुत-सेवा के महान् पुण्य कार्य में आगे से आगे बढ़ा रहा है। अतः इस प्रसंग पर पूज्य गुरुदेव काम म स्मरण होना स्वाभाविक है। जब भी कोई नया आगम सम्पादित प्रकाशित होता तो उसे देखकर उन्हें ।
बहुत अधिक प्रसन्नता होती थी, सबसे पहले वे उसे पढ़ते थे और यही आशीर्वाद देते-"जिनवाणी की सेवा करते रहो। घर-घर में महावीर के उपदेश पहुँचा दो यही मेरी तमन्ना है।"
इस आगम प्रकाशन में सुश्रावक श्री महेन्द्र जी जैन, लुधियाना ने अपने पूज्य पिताजी श्री त्रिलोकचन्द जी 'भगत जी' की पुण्य स्मृति में सहयोग प्रदान किया है। अतः वे विशेष धन्यवाद के पात्र हैं।
आगमों का चित्रों सहित अंग्रेजी अनुवाद का कार्य बहुत ही श्रमपूर्ण तथा महँगा है, परन्तु अनेक गुरुभक्त श्रावकों तथा जिनवाणी के उपासक दानवीरों के सहयोग से यह कार्य आगे बढ़ रहा है और बढ़ता ही जायेगा। इसी दृढ़ विश्वास के साथ !''
-प्रवर्तक अमर मुनि
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