Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang  Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 274
________________ ४५० सूयगडो २ कारणं पावएणं कायवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, हणंतस्स समणक्खस्स सवियारमण-बयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि पासओ-एवंगुणजातीयस्स पावे कम्मे कज्जइ। पुणरवि चोयए एवं ब्रवीति –तत्थणं जेते एवमाहंसु-असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वईए पावियाए, असंतएणं काएणं पावएणं, अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियार-मण-वयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मे कज्जइ--- [तत्थ णं जे ते एवमाहंसु] ' मिच्छं ते एवमासु ।। हेउ-पदं ३. तत्थ पण्णवए चोयगं एवं वयासी-जं मए पुव्वं वुत्तं असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वईए पावियाए, असंतएणं काएणं पावएणं, अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियार-मण वयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मे कज्जइतं सम्म। कस्स णं तं हेउं? आचार्य आह-तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता, तं जहापढविकाइया' 'आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया. तसकाइया । इच्चेतेहि छहि जीवणिकाएहिं आया अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे, णिच्च पसढ-विओवात-चित्त-दंडे, तं जहा—'पाणाइवाए' 'मुसावाए अदिण्णादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे "माणे मायाए लोहे पेज्जे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुण्णे परपरिवाए अरइरईए मायामोसे° मिच्छादसणसल्ले ॥ १. एतत् पुनरुक्तं वर्तते तेन कोष्ठके विन्यस्तम् ।। अदिण्णादाणचित्तदंडे भवइ । मेहणे आया २. सं० पा०-पुढविकाइया जाव तसकाइया। अपडियपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्च पसढ३. विउवाय (क, ख)। मेहणचितदंडे भवइ । परिग्गहे आया अप्पडि४. सं० पा०-पाणाइवाए जाव परिग्गहे । हयपच्चखाय-पावकम्मे णिच्च पसढपरिगह५. सं० पा० --कोहे जाव मिच्छा । चित्तदंडे भवइ। कोहे आया अप्पडिय६. प्राणातिपातादारभ्य मिथ्यादर्शनशल्यपर्यन्तं पच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढकोहचित्तदंडे संक्षिप्तपाठो वर्तते। चूणिवृत्त्योरनुसारेण स भवइ । माणे आया अप्पडिहयपच्चक्खायएवं विस्तृतो भवति–पाणाइवाए आया पावक्कमे णिचं पसढमाणचितदंडे भवइ । अपडियपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढ- मायाए आया अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे पाणाइवायचित्तदंडे भवई। मुसावाए आया णिच्च पसढमायचित्तदंडे भवइ । लोहे आया अपडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढ- अप्पडिहयपच्च क्खाय-पावकम्मे णिचं पसद्धमूसावायचित्तदंडे भवइ । अदिण्णादाणे आया लोहचित्तदंडे भवइ। पेज्जे आया अप्पडिहयअप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्च पसढ- पच्चक्खाय-पावकम्मे णिच्चं पसढ़पेज्जचित्तदंडे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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