Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang  Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 320
________________ ३॥४ १२२ १२२ बहुपाणा जाव संताणगा बहुवीया जाव संताणगा बहुरयं वा जाव चाउलपलंब भगवंतो जाव उवरया भिक्खुगी वा जाव पबिट्रे १२६ ३३१ ११८२ २।२५ ११५,६,७,११,१२,४२,६२,६२,६६,६६, १०१,१०४,१०५,१०७-१०६,१११ १।१२१ ११ १२९३,६४ शहर भिक्खूणी वा सेज्ज पुण जाणेज्जा असणं वा ४ आउकायपइट्रियं तह चेव । एवं अगणिकायपइद्रियं लाभे भिक्खू वा जाव पग्गहिय. भिक्खू वा जाव पविढे भिवत्र वा २ जाव सद्दाई भिक्खू वा जाव समाणे १११४५ ११२३,४६,५०,५२ ११०२ १३५३,५५,५८,६१,८३,८४,८७,८६, ६०,६७,१०२,१०६,११०,११२-११६, १२४,१२५,१२६,१३५,१३६, १४५,१४७,१५१ ११.१४,१५ ११८२,१२८,१३३,१३४,१४४ ५२७ ११ ११ रा२४ ४।२५ १२१४२ भिक्खू वा २ जाव सुणेति भिक्खू वासेज्ज मणी वा जाव रयणावली मणुस्सं जाव जलयर मत्ते तहेव दोच्चा पिंडेसणा महद्धणमोल्लाई.."लाभे महन्वए" मासेण वा जहा वत्थेसणाए मूलाणि वा जाव हरियाणि रज्जमाणे जाव विणिग्घाय रज्जेज्जा जाव गो लाढे जाव णो वएज्जा जाव परोक्खवयणं वत्थाणि..'लाभे वप्पाणि वा जाव भवणगिहाणि वायण जाव चिताए वित्ती जाव रायहाणि सअंडं जाव णो १५१५६,६३,८४,९१ ६१२१ १०११२ १५७३,७४ १५०७३,७४ ३१२ ४४ ५१५ ४।२१ २०४६ १११४१ १६४ १५१४६ श२२ २।१४ १५१७२ १५१७२ ३ ४१३ ११४ ३१४७ ३।३ ७.३३ १४३,३१२ ७।२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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