Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
३१५८ ७११४
१३२८ १६४२
१३१४८-१५४ ११११४ ११३१२-१४,१६ १११७-११,१५ ७।३६-४२
श१४१-१४७ ११४,९२
१११५
१०५ ७.२५-२८
७।३
णगरस्स वा जाव रायहाणीए णिक्खमणपवेसाए जाव धम्माणु ओग तं चेव भाणिय व्वं गवरं चउत्थाए णाणत से भिक्खू वा जाव समाणे सेज्ज पुण पाणग-जायं जाणेज्जा तंजहा तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदग वा आयाम वा सोवीरं वा सुद्धवियर्ड वा अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे तहेव पडिगाहेज्जा तहप्पगार जाव को तहप्पगाराइं णो तहप्पगाराई."सहाई.''गो तहेव तिन्निवि आलाधगा वर ल्हसुण दंडगं वा जाव चम्मछेदणगं | दस्सुगायतणाणि जाव बिहारवत्तियाए दुब्बद्धे जाव णो देज्जा जाव पडिगाहेज्जा देज्जा जाव' फासुयं 'पडिगाहेज्जा देज्जा जाव' फासुयं"लाभे दोहिं जाव सण्णिहिसपिणचयाओ निक्खमणपवेसाए जाव धम्माणु ० निक्खिवाहि जहा इरियाए णाणत्तं वत्थपडियाए पइण्णा जाब जं पगिझिय जाव णिज्झाएज्जा पडिक्कमामि जाव वोसिरामि पडिम जहा पिंडेसणाए पडिमाणं जहा पिंडेसणाए पडिमाणं जाव पगहियतरागं पडिवज्जमाणे तं चेव जाव अण्णोष्णसमाहीए
३९ ७११ १११४४ ११४७ ५१८ १६२४ ३१२
१११४१ १११४१ १३१४१
११२१
१।४२
५१५० २११६,२२,६।२८,४५ ३।४८,४६ १५२५० ६२२० ५२१ ८।२१-३०
३१६१ ११५६ ३४७ १५२४३ १११५५
१४१५५ २०६७-७६
२०६७
१११५५
-
-
१,२. अन्न 'जाव' शब्दस्य व्यत्ययोपि वर्तते ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365