Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 38
________________ |१७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ आचारांग सूत्र - पढमो सुखंधो ठाणेण परिकिलंते, णिसीएज्जा य अंतसो ॥ आसीणेsलिसं मरणं, इंदियाणि समीरए । कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए || जओ वज्जं समुप्पज्जे, ण तत्थ अवलंबए । तओ क्से अप्पाणं, सव्वे फासेऽहियासए || अयं चायततरे सिया, जे एवं अणुपालए । सव्वगायणिरोहे वि, ठाणाओ ण वि उब्भमे || अयं से उत्तमे धम्मे, पुव्वट्ठाणस्स पग्गहे । अचिरं पडिलेहित्ता, विहरे चिट्ठ माहणे ॥ अचित्तं तु समासज्ज, ठावए तत्थ अप्पगं । वोसिरे सव्वसो कायं, ण मे देहे परीसहा ॥ जावज्जीवं परीसहा, उवसग्गा इति संखाय । संडे देहभेयाए, इति पण्णेऽहियास ॥ भेउरेसु ण रज्जेज्जा, कामेसु बहुयरेसु वि । इच्छालोभं ण सेवेज्जा, धुववण्णं सपेहिया ॥ सासएहिं णिमंतेज्जा, दिव्वमायं ण सद्दहे । तं पडिबुज्झ माहणे, सव्वं णूमं विहुणिया || सव्वद्वेहिं अमुच्छिए, आउकालस्स पारए । तितिक्खं परमं णच्चा, विमोहण्णयरं हियं ॥ त्ति बेमि । ॥ अट्ठमो उद्देसो समत्तो ॥ ॥ अट्ठमं अज्झयणं समत्तं ॥ नवमं अज्झयणं उवहाणसुयं 32

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