Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission
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आचारांग सूत्र - पढमो सुखंधो
ठाणेण परिकिलंते, णिसीएज्जा य अंतसो ॥ आसीणेsलिसं मरणं, इंदियाणि समीरए । कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए ||
जओ वज्जं समुप्पज्जे, ण तत्थ अवलंबए । तओ क्से अप्पाणं, सव्वे फासेऽहियासए ||
अयं चायततरे सिया, जे एवं अणुपालए । सव्वगायणिरोहे वि, ठाणाओ ण वि उब्भमे ||
अयं से उत्तमे धम्मे, पुव्वट्ठाणस्स पग्गहे । अचिरं पडिलेहित्ता, विहरे चिट्ठ माहणे ॥
अचित्तं तु समासज्ज, ठावए तत्थ अप्पगं । वोसिरे सव्वसो कायं, ण मे देहे परीसहा ॥
जावज्जीवं परीसहा, उवसग्गा इति संखाय । संडे देहभेयाए, इति पण्णेऽहियास ॥
भेउरेसु ण रज्जेज्जा, कामेसु बहुयरेसु वि । इच्छालोभं ण सेवेज्जा, धुववण्णं सपेहिया ॥
सासएहिं णिमंतेज्जा, दिव्वमायं ण सद्दहे । तं पडिबुज्झ माहणे, सव्वं णूमं विहुणिया ||
सव्वद्वेहिं अमुच्छिए, आउकालस्स पारए ।
तितिक्खं परमं णच्चा, विमोहण्णयरं हियं ॥ त्ति बेमि ।
॥ अट्ठमो उद्देसो समत्तो ॥
॥ अट्ठमं अज्झयणं समत्तं ॥
नवमं अज्झयणं
उवहाणसुयं
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