Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission
View full book text ________________
आचारांग सूत्र - पढमो सुयखंधो
१२ वित्तिच्छेयं वज्जेतो, तेसिंऽप्पत्तियं परिहरंतो ।
मंदं परक्कमे भगवं, अहिंसमाणो घासमेसित्था | १३ | अवि सूइयं वा सुक्कं वा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं ।
अदु बुक्कसं पुलागं वा, लद्धे पिंडे अलद्धे दविए || अवि झाइ से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाणं |
उड्ढं अहे य तिरियं च, पेहमाणे समाहिमपडिण्णे || |१५| अकसायी विगयगेही य सद्द-रूवेसु अमुच्छिए झाइ ।
छउमत्थे विप्परक्कममाणे, ण पमायं सई पि कुव्वित्था | सयमेव अभिसमागम्म, आयतजोगमायसोहीए ।
अभिणिव्वुडे अमाइल्ले, आवकहं भगवं समियासी || १७ | एस विही अणुक्कतो, माहणेण मईमया ।
अपडिण्णेण वीरेण, कासवेण महेसिणा || त्ति बेमि || (बहुसो अपडिण्णेण भगवया एवं रीयंति ॥ त्ति बेमि ||)
|| चउत्थो उद्देसो समत्तो ||
॥ णवमं अज्झयणं समत्तं ॥
पढमो सयखंधो समत्तो
Loading... Page Navigation 1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116