Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 8
________________ आचा० ॥२२५॥ परिशामां में कह्यो छे, अने दरेक उद्देशानो अधिकार नियुक्तिकार पोते कहे छे. सयणे य अददत्तं, बीयगंमि माणो अ अत्थसारो अ । भोगेसु लोग निस्साइ, लोगे अममिज्जया चेव ॥ १६३ ॥ पहेला उद्देशाना अर्थ अधिकार ( विषय ) मां मातापिता विगेरे संसारी - सगामां साधुए प्रेम न करवो. ( न करवो, ए मूळ सूत्रमां नथी; ते उपरथी लीधुं छे, ) ते प्रमाणे आगळ सूत्र आवशे के, मारी माता, मारा पिता इत्यादि साधुने न जोइए. बीजा उद्देशामां संयममां अदृढपणुं ( ढीलापणुं ) न कर; पण विषय अने कषाय विगेरेमां साधुए अदृढपणुं कर; अने तेज सूत्र कहे छे के, अरतिमां बुद्धिमान पुरुष आसक्ति न करे. त्रीजा उद्देशामां मान ए अर्थसार नथी; कारणके, जाति विगेरेथी उत्तम साधुए कर्मवशथी संसारनी विचित्रता जाणीने वधा मदनां ठेकाणामां पण मान न कर. कां छे केः — कोण गोत्रनो वाद करनारा ? कोण माननो वाद करनारा छे ? चोथा उद्देशामां कहे छे के भोगमां प्रेम न धारवो कारण के सूत्रमां कहेशे, स्त्रीओथी लोकमां दुःख पामशे अने तेनो मोह छोटे तो तेथी तेमां भोगीओने भविष्यमां थतां दुःखो बतावशे. पांचमां उद्देशामां साधुए पोतानां समां धन मान अने भोग त्याग्या छतां संयमधारक साधुए शरीरनी प्रतिपालना माटे गृहस्थोए पोताना माटे करेला आरंभथी बनेली वस्तु लेवानी निश्राए विचरखं. तेज सूत्र कहेशे के समस्थित अणगार होय विगेरे ज्यां सुधी निर्वाह करे विगेरे छे. छट्टा उद्देशामां लोकनिश्रामां विचरता साधुए ते लोको साथै पहेलां के पछीनो परिचय थयो होय सूत्रम् ॥२२५॥

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