________________
अध्यात्म बारहखड़ी
। श्रगधग छंद - ज्ञांनी तू एक स्वामी परम पद धरो अंबिका नाथ संतो। अंवा शक्ती हि तेरी अवर नहि कभी तू जु है श्रीरमंतो। पद्मा माया सुलक्ष्मी प्रगट निज गुणा अंतरा भूतिकंतो। तू ही तू ही प्रभूजी अतिपति अतुलो एक शुद्धो अनंतो॥४१॥ मो कौं भक्ती हि देहो अवर नहि चहूं, एक तो ही जु सेऊं । तेरे पादांबुजा जे मधुर मधु भसढे अस्लीवास लेऊ। अंवा ताता सुभ्राता सकल तजि प्रभू एक तोही जु वेऊ। सेकं सेऊ हि तोही तुव मय हि भयो धर्म नावा जु खेऊ ।। ४२॥
... वसंत तिलका छंद ..तोकौं नमोस्तु जग देव विशाल मूर्ति,
ज्ञान स्वरूप अनिरूप रसाल मूर्ती। ध्यान प्ररूप जगभूप अनंतमूर्ती,
शुद्ध स्वभाव परिभाव प्रभू अमूर्ती ॥४३॥ शुद्धात्म लब्धि उपलब्धि मई जु तू ही,
लोकाधिनाथ जगदीस सदा प्रभू ही। योगाधिरूढ अवनीश विभू अभू ही,
सर्वस्व रूप नहि रूप महाप्रभू ही॥ ४४ ।।
- दोहा -
तुव गुन अंबुधि मैं प्रभू, रसकल्लोल प्रतच्छि। सो विभूति चंडी महा, रमा सुदौलति लच्छि।। ४५ ।।
इति अंकार वर्णनं। आरौं अः अक्षर का व्याख्यान करै है।