Book Title: Adhyatma Barakhadi
Author(s): Daulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 298
________________ २९० अध्यात्म बारहखड़ी हेला मात्रै तू हि, जीव को करह उधारा, ............ ... .... हेटलि तेरै सर्व, गर्व हर तू हि अपारा। हेला शीघ्र जु नाम कहिये, तू हि शीघ्र भवतार है, हेला लीला नाम कहिये, लीला धर त सार है॥२२ ।। लीला ज्ञान विभूति, और को लीला नाही, हेरयो तोहि मुनीनि, राचिया तो ही माही। हेम सुकामिनि त्यागि, त्यागि सहु रागर दोषा, तेरे होय सुदास, मानमद करहि जु सोषा। माया काया सौं न नेहा, एक नेह करि तोहि सौं, भव्य अनंता पार पहुंता, रहित हुवा जे मोह सौं॥२३ ।। - दोहा - पार न पहुंचे ज्ञान विनु, ज्ञान भगति विनु नाहि। भगति दया विनु नाहि कहुं, दया मोम चित्त माहि॥२४॥ जे अभक्ष भोजन करें, पीनै जेहि अपेय। करहि अगम्यागम्य जे, ते करणा नहि लेय॥ २५ ।। चित राखें कोमल सदा, वोलहि हित मित र्दैन। तन मन करि दुख देंहि नहि, तेदयाल बुधि नैंन॥२६ ।। - छप्पय - हेडा कहिये मांस, मांस सहु होय अभक्षं। वे ते चऊ पंचिंदि जीव जंगम नहि भक्षं। थावर होय सुभक्ष, मांस रक्तादि न जामैं। अन्न वीण जल छाण, भेद भासइ तू तामैं । अन्न वारि लघु अशन करिक, त्यागि अभक्षा सब जिके। तोहि भसैं मन शुद्ध होई पार होई भव” तिके ॥२७॥

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