Book Title: Adhyatma Barakhadi
Author(s): Daulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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अध्यात्म बारहखड़ी
२९३
अथ द्वादश मात्रा एक कवित्त मैं।
हरिकै तु ही जुहार हारल की लाकरी है,
हित मित बायक तू, नायक सु जायका। हीरा मनि मानक जे हीन सहु कंकर ए,
हुलसैं न इनैं पाय, तेरे निज पायका । हूं तो सठ भूलौ तोहि, हे प्रभु सुधारि मोहि,
है त्रिलोकनाथ देव ऋद्धि सिद्धि दायका। होता सब कर्मनि को, होस नांहि तेरै कोऊ,
हंस देव हः स्वरूप, सर्व वात लायका॥३७॥
- कुंडलिया छंद - तेरी नाथ स्व हर्षता, धेरै न हर्ष विषाद, ___ गुन अनंत रूपा महा, सो लछिमी अविवाद।
सो लाछमी अविवाद, ऋद्धि सिद्धि परसिद्धि, ____नही हीनता होइ, स्वानुभूति परिवृद्धि। सत्ता ज्ञान विभूति, संपदा संपति देरी,
भाओं दौलति ताहि, हर्षता नाथ सु तेरी ॥३८॥ इति हकार संपूर्ण । आगै क्षकार का व्याख्यान करै है।
– शोक - क्षमाधारं रमानाथं, क्षांति रूपं महाबलं । क्षिप्त रागादि संतानं, क्षीण मोहं जगद्गुरुं ॥१॥ क्षुद्रैरलभ्यमीशानं, खू मंत्राक्षर भासकं। क्षेत्राधिपं त्रिलोकेशं, क्षैम धर्म प्रकाशकं ॥२॥ क्षोणीधरं महाधीरं, क्षौमालंकारवर्जितं । क्षंताधिपं सदाशांतं, क्षः प्रकाशं नमाम्यहं ॥३॥

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