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अध्यात्म बारहखड़ी
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अथ द्वादश मात्रा एक कवित्त मैं।
हरिकै तु ही जुहार हारल की लाकरी है,
हित मित बायक तू, नायक सु जायका। हीरा मनि मानक जे हीन सहु कंकर ए,
हुलसैं न इनैं पाय, तेरे निज पायका । हूं तो सठ भूलौ तोहि, हे प्रभु सुधारि मोहि,
है त्रिलोकनाथ देव ऋद्धि सिद्धि दायका। होता सब कर्मनि को, होस नांहि तेरै कोऊ,
हंस देव हः स्वरूप, सर्व वात लायका॥३७॥
- कुंडलिया छंद - तेरी नाथ स्व हर्षता, धेरै न हर्ष विषाद, ___ गुन अनंत रूपा महा, सो लछिमी अविवाद।
सो लाछमी अविवाद, ऋद्धि सिद्धि परसिद्धि, ____नही हीनता होइ, स्वानुभूति परिवृद्धि। सत्ता ज्ञान विभूति, संपदा संपति देरी,
भाओं दौलति ताहि, हर्षता नाथ सु तेरी ॥३८॥ इति हकार संपूर्ण । आगै क्षकार का व्याख्यान करै है।
– शोक - क्षमाधारं रमानाथं, क्षांति रूपं महाबलं । क्षिप्त रागादि संतानं, क्षीण मोहं जगद्गुरुं ॥१॥ क्षुद्रैरलभ्यमीशानं, खू मंत्राक्षर भासकं। क्षेत्राधिपं त्रिलोकेशं, क्षैम धर्म प्रकाशकं ॥२॥ क्षोणीधरं महाधीरं, क्षौमालंकारवर्जितं । क्षंताधिपं सदाशांतं, क्षः प्रकाशं नमाम्यहं ॥३॥