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________________ अध्यात्म बारहखड़ी हौं सठ जगत मझार, होस करि विषयनि केरी। रुलिउ अनंतउ काल, भक्ति भाई नहि तेरी। हिंसादिक अपराध करि कैं, नर्क निगोदादिक लही। विनु भजन रावर कुमति लहि, कुगति अनंती मैं गही।। ३२ ॥ - सोरठा - अब दै भगति दयाल, भव संकट हरि नाथ जी। भगत पछिल तू लाल, भगत कर भगवंत जी॥३३॥ हंस नाव है भानु, भानु ससि तेरे दासा। हंस पति तू देव, मोह मद तिमर विनासा। परम हंस मुनिराज, तू हि हंसनि को सरवर। हंस पखेरू जाति, तिन समा उज्जल मुनिवर। क्षीर नीर ज्यौँ जीव जड़ को, भेद करें यतिवर प्रभू। हंस जीव सवही कहांवें, तू जीवनि को गुर विभू॥३४॥ हं मंत्राक्षर तू हि, मंत्रमय मूरति तेरी। परम समाधि सु तंत्र, भूति सहु तेरी चेरी। ह्रां ह्रीं हूं ह्रीं ह्वः जु, परम तू मंत्र स्वरूपा । हिंसा ध्यांत उछेदा करण तू भांनु अनूपा। कहा हंस की चाल जैसी, जैसी चाल सुरावरी। हंस अनंत उद्योत धर प्रभु हरहु जु भ्रांति विभावरी ।। ३५ ।। हंत कहावै खेद, खेद नहि तेरै कोई। तू निस्वेद अभेद, देव निरखेद सु होई। दुखहर तू हि मुनिंद, दोषहर तू हि अनंदा। तू हि काल हर देव, कंट हर तू हि जिनिंदा । सकल कुविधा हरणहारा, है दारिद्र हरो तुही। ह्रः मंत्राक्षर रूप भूपा, सर्वाक्षर तू ही सही ॥३६॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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