Book Title: Acharya Prabhachandra aur uska Pramey kamal Marttand
Author(s): Manikyanandi Sutrakar
Publisher: Z_Mahendrakumar_Jain_Nyayacharya_Smruti_Granth_012005.pdf
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१४४ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ
( पृ० १८ ) में कर आया हूँ । इनके प्रमाणवार्तिक, हेतुबिन्दु, न्यायबिन्दु, सन्तानान्तर सिद्धि, वादन्याय, सम्बन्धपरीक्षा आदि ग्रन्थोंका प्रभाचन्द्रको गहरा अभ्यास था । इन ग्रन्थोंकी अनेकों कारिकाएँ, खासकर प्रमाणवार्तिककी कारिकाएँ प्रभाचन्द्रके ग्रन्थों में उद्धृत हैं। मालूम होता है कि सम्बन्धपरीक्षाकी अथ से इति तक २३ कारिकाएँ प्रमेयकमलमार्त्तण्डके सम्बन्धवादके पूर्वपक्ष में ज्योंकी त्यों रखी गई हैं, और खण्डित हुई हैं । विद्यानन्दके तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में इसकी कुछ कारिकाएँ ही उद्धृत हैं । वादन्यायका " हसति हसति स्वामिनि ” आदि श्लोक प्रमेयकमलमात्तण्ड में उद्धृत है । संवेदनाद्वैत के पूर्वपक्ष में धर्मकीर्ति के 'सहोपलम्भनियमात् ' आदि हेतुओं का निर्देशकर बहुविध विकल्पजालोंसे खण्डन किया गया है । वादन्यायकी " असाधनाङ्गवचनमदोषोद्भावनं द्वयोः " कारिकाका और इसके विविध व्याख्यानोंका सयुक्तिक उत्तर प्रमेयकमलमार्त्तण्डमें दिया गया है। इन सब ग्रन्थोंके अवतरण और उनसे की गई तुलना न्यायकुमुदचन्द्रके टिप्पणी में देखनी चाहिए ।
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प्रज्ञाकरगुप्त और प्रभाचन्द्र - धर्मकीर्तिके व्याख्याकारोंमें प्रज्ञाकरगुप्तका अपना खास स्थान है । उन्होंने प्रमाणवार्तिकपर प्रमाणवार्तिकालङ्कार नामकी विस्तृत व्याख्या लिखी है इनका समय भी ईसाकी 9वीं शताब्दीका अन्तिम भाग और आठवींका प्रारम्भिक भाग है । इनकी प्रमाणवार्तिकालङ्का र टीका वार्तिकालङ्कार और अलंकारके नामसे भी प्रख्यात रही है । इन्हींके वार्तिकालङ्कारसे भावना विधि नियोगकी विस्तृत चर्चा विद्यानन्दके ग्रन्थों द्वारा प्रभाचन्द्रवे न्यायकुमुदचन्द्र में अवतीर्ण हुई है । इतना विशेष है कि - विद्यानन्द और प्रभाचन्द्रने प्रज्ञाकरगुप्तकृत भावना विधि आदिके खंडनका भी स्थान-स्थानपर विशेष समालोचन किया है । प्रमेयकमलमार्त्तण्ड ( पृ० ३८० ) में प्रज्ञाकरके भाविकारणवाद और भूतकारणवादका उत्लेख प्रज्ञाकरका नाम देकर किया गया है । प्रज्ञाकरगुप्तने अपने इस मतका प्रतिपादन प्रमाणवार्तिकालङ्कारमें किया 19 भिक्षु राहुल सांकृत्यायन के पास इसकी हस्तलिखित कापी है । प्रभाचन्द्रने धर्मकीर्तिके प्रमाणवार्तिककी तरह उनके शिष्य प्रज्ञाकरके वार्तिकालङ्कारका भी आलोचन किया है ।
प्रभाचन्द्रने जो ब्राह्मणत्वजातिका खण्डन लिखा है, उसमें शान्तरक्षितके तत्त्वसंग्रहके साथ ही साथ प्रज्ञाकरगुप्तके वार्तिकालङ्कारका भी प्रभाव मालूम होता है । ये बौद्धाचार्य अपनी संस्कृति के अनुसार सदैव जातिवादपर खड्गहस्त रहते थे । धर्मकीर्तिने प्रमाणवार्तिक के निम्नलिखित श्लोक में जातिवाद के मदको जडताका चिह्न बताया है—
"वेदप्रामाण्यं कस्यचित्कर्तृ वादः स्नाने धर्मेच्छा जातिवादावलेपः । सन्तापारम्भः पापहानाय चेति ध्वस्तप्रज्ञानां पञ्च लिङ्गानि जाड्ये ||"
उत्तराध्ययनसूत्रमें 'कम्मुणा बम्हणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ' लिखकर कर्मणा जातिका स्पष्ट समर्थन किया गया है ।
दि० जैनाचार्यों में वराङ्गचरित्रके कर्ता जटा सिंहनन्दिने वराङ्गचरितके २५वें अध्यायमें ब्राह्मणत्वजातिका निरास किया है । और भी रविषेण अमितगति आदिने जातिवाद के खिलाफ थोड़ा बहुत लिखा है पर तर्क ग्रन्थों में सर्वप्रथम हम प्रभाचन्द्र के ही ग्रन्थोंमें जन्मना जातिका सयुक्तिक खण्डन यथेष्ट विस्तार के साथ पाते हैं ।
१. इसके अवतरण अकलंकग्रन्थत्रयकी प्रस्तावना, पृ० २७ में देखना चाहिए ।
२, इन आचार्यों के ग्रन्थोंके अवतरण के लिए देखो न्यायकुमुदचन्द्र, पृ० ७७८, टि०९ ।
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