Book Title: Acharangsutram Part 02
Author(s): Shilankacharya,
Publisher: Agamoday Samiti
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श्रीआचाराङ्गवृत्तिः (शी०)
श्रुतस्कं०२ चूलिका ३ भावनाध्य.
॥४२६॥
निग्गंथे नो भयभीरुए सिया, केवली बूया-भयपत्ते भीरू समावइज्जा मोसं वयणाए, भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया चउत्था भावणा ४ । अहावरा पंचमा भावणा-हासं परियाणइ से निग्गंथे नो य हासणए सिया, केव० हासपत्ते हासी समावइज्जा मोसं वयणाए, हासे परियाणइ से निग्गंथे नो हासणए सियत्ति पंचमी भावणा ५ । एतावता दोच्चे महव्वए सम्म कारण फासिए जाव आणाए आराहिए यावि भवइ दुच्चे भंते! महव्वए ॥ अहावरं तच्चं भंते ! महव्वयं पञ्चक्खामि सव्वं अदिन्नादाणं, से गामे वा नगरे वा रन्ने वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गिहिज्जा नेवन्नेहिं अदिन्नं गिण्हाविज्जा अदिन्नं अन्नपि गिण्हतं न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए जाव वोसिरामि, तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति, तत्थिमा पढमा भावणा-अणुवीइ मिउग्गहं जाई से निग्गंथे नो अणणुवीइमिउग्गहं जाई से निग्गंथे, केवली बूया-अणणुवीइ मिउग्गहं जाई निग्गंथे अदिन्नं गिण्हेज्जा, अणुवीइ मिउग्गहं जाई से निग्गंथे नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइत्ति पढमा भावणा १ । अहवरा दुचा भावणा-अणुन्नविय पाणभोयणभोई से निग्गंथे नो अणणुन्नविअ पाणभोयणभोई, केवली बूया-अणणुन्नविय पाणभोयणभोई से निग्गंथे अदिन्नं भुंजिज्जा, तम्हा अणुनविय पाणभोयणभोई से निग्गंथे नो अणणुनविय पाणभोयणभोईत्ति दुचा भावणा २ । अहवरा तच्चा भावणा-निग्गंथेणं उग्गहसि उग्गहियंसि एतावताव उग्गहणसीलए सिया, केवली बूया-निग्गंथेणं उग्गहंसि अणुग्गहियंसि एतावता अणुग्गहणसीले अदिन्नं ओगिव्हिज्जा, निग्गंथेणं उग्गई उग्गहियंसि एतावताव उम्गहणसीलएत्ति तच्चा भावणा । अहावरा चउत्था भावणा-निग्गंथेणं उग्गहंसि उग्गहियंसि अभिक्खणं २ उग्गणसीलए सिया, केवली बूया-निग्गंथेणं
भावणा २ ॥
जा, निर्गणसिया, केवली
॥४२६॥
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