Book Title: Acharangsutram Part 02
Author(s): Shilankacharya,
Publisher: Agamoday Samiti
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________________ श्रीआचाराङ्गवृत्तिः (शी०) भावपरिण्णा दुविहा मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य / मूलगुणे पंचविहा दुविहा पुण उत्तरगुणेसु॥५॥ पाहण्णेण उ पगयं परिणाएय तहय दुविहाए / परिणाणेसु पहाणे महापरिण्णा तओ होइ // 6 // देवीणं मणुईणं तिरिक्खजोणीगयाण इत्थीणं / तिविहेण परिश्चाओ महापरिणाए निज्जुत्ती // 7 // अविवृता नियुक्तिरेषा महापरिज्ञायाः, अविवृता इत्यत्रोपन्यस्ताः। श्रुतस्क०२ चूलिका 4 विमुक्त्य. // 432 // COMSROSCOREGAON // इत्याचार्यश्रीशीलाङ्कविरचितायामाचारटीकायां द्वितीयश्रुतस्कन्धः समाप्तः, समाप्तं चाचाराङ्गमिति // // ग्रन्थाग्रम् 12000 // इति श्रीमदाचाराङ्गविवरणं श्रीशीलाङ्काचार्षीयं समाप्तम् / ससससससससससससससससस // 432 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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