Book Title: Acharanga Stram Part 04 Author(s): Shilankacharya Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥६१२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तथा, छत्रीस प्रकारना गुणोना समुदायने धारनारो कुंडनी माफक निर्मळ ज्ञाने भरेलो समान-भूभाग एटले, संसक्त विगेरे (रागद्वेष)-दोपथी अदोषित, अथवा सुखविहारनां क्षेत्रमां मध्यस्थ रहे; तथा, ज्ञानदर्शन- चारित्र नामनो मोक्षमार्ग उपशमवाळा साधुओनो छे, तेमां रहे छे. समता धारे, केवो बनीने ? उपशांत थइ छे रजरूप मोहनीकर्म जेने, शुं करतो? जीवनीकायनी पोते रक्षा करतो बीजाने सारो उपदेश देवावडे रक्षा करावतो; अथवा नरकपात अटकावी वचाववाथी परनो रक्षक बने छे. 'स्रोतो मध्य गतः' आथी प्रथम भांगामां आवेला स्थविर आचार्यने कहे छे, तेने श्रुतअर्थना दान ग्रहणनो सद्भाव छे, तेथी स्रोत मध्यगतपं छे ते आचाय केवा होय? ते कहे छे:- ते आचार्य क्षोभायमान न थायः तेवा हृद जेवा बधी रीते इन्द्रियो तथा मनने वश राखनारा गुतिए गुप्त छे तेने तुं जो, (आबुं शिष्यने गुरु कहे छे.) तथा आचार्य शिवाय पण, एवा बीजा बहु साधुओ संभवे छे. एवं बताववा कहे छे : - आ मनुष्य लोकमां पूर्वे बतावेला स्वरूप - (गुणो) वाळा महर्षिओ [मोटा मुनिओ ] छे तेमने तुं जो ते महर्षिओ केवा छे? ते कहे छे:- फक्त आचार्योज हृद जेवा छे. एटलुंज नहि; पण, बीजा साधुभो पण तेवा हृद जेवा छे. प्रकर्षथी जणाय ते प्रज्ञान. पोतानुं तथा परनुं स्वरुप चतावनार ते आगम छे, तेने भणेला अर्थात् आगमना जाण ( गीतार्थ ) होय; कदाच, तेव जाणनारा छे छतां, मोहना उदयथी कोइ वखत हेतु उदाहरणना असंभवमां, अने ज्ञेयना गहनपणाथी संशयमां पडेला सम्यगश्रद्धानने न माननारा पण होय; तेथी, खुलासों करे छे के, 'प्रबुद्धा' प्रकर्षथी जेम, तीर्थकर कहे तेज तत्र पोते समजेला होय; | अने तेत्रा छतां भारी कर्मने लीधे सावध - अनुष्ठानने छोडनारा न होय; ( चारित्र न पाळे ) तेथी खुलासा करे छे के, 'आरंभ परताः' ते सावययोगथी दूर रहेला महर्षिओ छे. अमारा उपरोध ( शरमथी ) ग्रहण न कर; पण तमारे तमारी निर्मळ बुद्धिवडे For Private and Personal Use Only सूत्रम् ।।६१२ ॥Page Navigation
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