Book Title: Acharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 12
________________ श्रीआचाराङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः२ // 2 // क्रमः विषयः सूत्रम् 1.1.9 विशोधिकोटिः नित्याग्रपिण्डवर्जनम्। 231-232 प्रथमाध्ययने द्वितीयोद्देशकः (पिण्डविशोधिकोटि:) 233-236 1.2.1 अष्टमीपौषधिकाद्यशनादिवर्जनम्। 233 |1.2.2 भिक्षार्थं प्रवेष्टव्यकुलानि / 234 8|1.2.3 समवायाद्यशनादिप्रतिषेधः। 235 1.2.4 अन्यग्रामसङ्खड्याहारादि प्रतिषेधः, पूर्वप्रवृत्तगमनेन परिपाट्यागतग्रामे सङ्गडिज्ञानेऽन्यदिग्गमनं-तन्निमित्तं गच्छतः साधूनुद्दिश्य गृहस्थस्य वसतिकरणप्रकारश्च। 236 1.3 प्रथमाध्ययने तृतीयोद्देशक: (सङ्कड्यांदोषाः) 237-247 नियुक्तिः पृष्ठः | क्रम: विषयः सूत्रम् नियुक्तिः पृष्ठः 1.3.1 सयाहारिदोषाः सङ्कड्याम् - 562-563 ऐहिकामुष्मिकापाशश्च अन्यतरसङ्खड्याहार प्रतिषेधः ग्रामादि- 564-570 सङ्कडीप्रतिषेधः। 237-240 571-57 1.3.2 सामान्येन पिण्डशङ्का गच्छनिर्गताधिकारः 566 सर्वभण्डकसहित गृहपतिकुलगमना५६६-५६७ भावे निमित्तम्। 241-243 - 575-576 1.3.3 अजुगुप्सितेष्वपि दोषदर्शनात्प्रवेशप्रतिषेधः। 244 577 1.4 प्रथमाध्ययने चतुर्थोद्देशक: (शेषविधिः ) 245-247 - 578-582 1.4.1 मांसादिसडीप्रतिषेधः। 245 569-570 1.4.2 दुहामानगोप्रेक्षणे भिक्षार्थ प्रवेशप्रतिषेधः। 246 - 571-501.4.3 प्राधूर्णकभिक्षोराहारविधिः।२४७ // 2 //

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