Book Title: Acharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 10
________________ सम्पादकीयम् श्रीआचाराङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्ध:२ // 8 // चतुर्थचूलिकायामनित्यभावना प्रतिपाद्यते, भावना भवनाशिनीति वचनात् भावनाऽध्ययनस्य पश्चात् विमुक्त्यध्ययनमुक्तम् / पू.श्रुतोपासकमुनिराजश्रीजम्बूविजयेन संशोधिताः पाठा गृहीताः सन्ति मुद्रिताश्च पाठाः टीप्पण्यां (मु०) संज्ञया स्थापिताः सन्ति। वयमपि द्वितीयमग्रश्रुतस्कन्धं पठित्वा लोकस्याग्रं स्थानं प्राप्नुयाम। मुनिपुण्यकीर्तिविजयो गणिः। श्री श्रीपालनगर जैन श्वे० मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट श्रीपालनगर, 12 जमनादास मेहता मार्ग, वालकेश्वर, मुंबई - 400006. विक्रम सं० 2063 वीर सं० 2533

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