Book Title: Achar Pradip
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 10
________________ एसो मे परिकहिओ। ८८-१-१४ | कामं सुओवओगो। १२-१-१२ | कोहे माणे माया। ६९-१-६ ओ कायिक वाचिकं मान ०। ४५-२-१५ | कोहे माणे य मायाए। ६८-१-९ ओहोवहोवग्गहियं । ७२-१-५ कालक्कमेण पत्तं । १२-१-१ | क्षणेन लभ्यते यामः। २८-१-१५ ओहो मुओवउत्तो। १-२-५ कालंमि कीरमाण। १३-१-३ | क्षेत्रं रक्षति चश्चा। काले कालनाणं । ३६-२-१४ | खज्जूरिपत्तमुजेण । -१-७ काले विणए बहुमाणे। ११-१-१३ - खंती सुहाण मूलं । १४-१-८ कत्यवि जीवो बलिओ।१०-२-३ | कालो सहाब नियई। १२-२करचुल्लपाणिएणवि। १३-१-२ । का पुण तत्कालपवनः। ५९-२-६ गणिअस्स य गीयाणं। ३६-२-९ ककशकर्मणि भिषजा। ४३-१-१३ किं राज्येन धनेन धान्य०३३-१-६ कृतज्ञस्वामिसंसर्ग०। गवेसगाय गहणे । कलावान धनवान् विद्वान् ४५-२-१० ४५-१-७ ७०-१-१४ ग्रीष्महेमन्तिकान् मासान् । १२-२-१४ कवलस्स य परिमाणं । केनाञ्जितानि नयनानि । १३-१-१४ ८४-२-१ | गेहागयाणमुचिय। ४-२-६ कस्तूरी पृषनां रदाः। ५१-१-३ ५१-१-३ | को इत्य सया सुहिओ। ४२-२-७ - घोडग लया य खंभे। ९०-२-७ कस्यादेशाव क्षपयति ६०-२-१५ | को कुवलयाण गंध। १४-१-१३ काउस्सग्गे जह सु०। ९१-१ । कोहाईशमणुदिणं । ८४-२-८ | चजण्हं खलु भासाणं । ५०-१-५ Jain Education Interiends For Privale & Personal use only wwwganelibrary.org

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