Book Title: Abhinav Hem Laghu Prakriya Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ સમાસ પ્રકરણ ८७ मनुभे हर, युक्ति, दण्ड 61२५६ ५२ छतांसा५ यता समासमा स्थान नत्व-सत्य नु णत्व-षत्व याय छे. नया पश्यतः + हरः = पश्यतोहर: = मतां खरी(१८) मातृ-पितृ स्वसुः २/३/१८ मातृ, पितृ शयी अनारे। - सोनी [२०८] | ५२ स्वस ना सरना सभासमा १२ यायचे. ★ अदसो कमायनणाः 3/२ 33 अदस् २४था ५२ | पितृवसा = ५४ (६ सभास) [२१४] रहेस थीनी ॐका विषय + लत्त. ५६ भने आयन (१०) निनद्याः स्नातेः कौशले २/3/२० नि पसग प्रत्यय ५२ छन सो५ यता नथा. अमुष्य पुत्रस्य भावः | मने नदी सच्थी ५२ २९।। स्ना धातुना स १२ नो = आमुष्यपुत्रिका = साना पुत्रनो भाव भाव-अथ निपुलता सभा भने समास विषयमां ष याय. भां पुत्रने चैगदेः ७/७३ था कञ् प्रत्यय भने नितरां स्नाति = निष्णातः = निपुल निस्नाति = निष्णः इच्चापु सो...रे २४/१०७ था स्त्रीक्षिणे अन इथयो । = निपुण (स्था पा...कः ५/1/1४२ थी क प्रत्यय) 0 अमुल्य अपत्यम् इति अमुष्य + आयन' = नद्यांस्नाति - नदी+स्ना+क-नदीष्णः - तरबैया/२१५] आमुष्यायणः = सानो पुत्र (नडादिभ्यः ६/१/५3 थी (१२१) प्रष्ठोऽग्रगे २/3/3२ प्र ५सया ५२ २हेस आयनण् (नुस। सूत्र : ५33) स्थ ना स्ने ४२ निपातन राय छे.जे अय. (११४) देवान प्रियः 3/२/७४ मा नाममा भी गाभी 2'हायता. प्रतिष्ठीते - प्र + स्थ = प्रष्ठः विलातिना सोप थाय नही देवानाम् +प्रियः देवानांप्रियः | (उपसर्गादातो डः ५/1/15 थी ड) प्रष्ठोऽग्रगामी-प्रष्ठो= हेवाने प्रिय = 4 निपातन समास छ [ce] | ग्रगः (अग्र + गम् + ड) २१६] (११५) अद् व्य जनान्त् सप्तम्या बहुलम् 3/२/१८ (१..) निदुः सुवेः समसूते: २/3/५६ निर , दुर , अ रात भने व्यसनात नामने लागी सप्तमीना सु. वि स पछी मावा सम अने सूति शम्ना मसम् सा५ यता नथी. अरण्ये तिलका:-अरण्येतिलकाः । स ने यार छ = गली तसना आउनु नाम युधि'ठी:-युधिषिरः = निगता समात् -निर + सम् - निःषम् - समता वगरनु युधिष्ठि२ सम अधिकथा- क्वचित् विभाषा त्वचि (प्रात्य.रि... 3/1/४७ थी ५भी) 2 शत दुःषमा सार= त्वक् सार: = qiस क्वचित् प्रवृति जलकुक्कुट |- ४, सुषमा - समु, विषमः - वसभु ४. |२१० नि२ + सूति - नि पूते - निर तर प्रसवाणा (११६) अमूध मस्तकात् स्वाङ्गादकामे 3/२/२२ मुन् । दु२ + सति - दुः ति - २५ प्रसवाणा भने मस्तक पति असन्त मनव्यनान्तवां-(इ कि श्तिव्...अथो 4/1/13८ थी इसायोछे.)२१७] शवाय नाम थी ५२ रन सतभीनो काम वनित (१२३) भ्रातुष्पुत्र कस्कादयः २/3/१४ मा सह। उत्त२५६ ५२ तासाप यता नयी कण्ठे कालः यस्य निपातन ४२राया छ भ्रातुपुत्रः - भत्रीले सः = कण्ठेकाल: = मद व उरसिलामानि यस्य सः = परमयजुप्पात्रम् - यज्ञनु उत्तम पात्र उरसि लामा = छाती ५२ वाण छेते कस्कः - अय-ए सर्पिषः कुण्डिका - धानी बहलम अधिभारथी करकमलम . गलरोगः पोरे थाय. | અહીં જે સમાસે નિપાતન થયાં છે તેમાં ૫ વર્ણ રિ૧૧] [ સિવાયના સ્વર પછીના સૂ ને જૂ અને મ વર્ણ પછી (११७) वाचस्पति वास्तेस्पति-दिवस्पति-दिवोदासम् । | स् थाय छे. 3/२/३१ ५६ विमति ना ५ ३२ना निपातन | (१२४) निष्प्राऽग्रोऽन्तः - खदिर-कार्याभ्र - शरेक्षुहराया छ. . [११3] | प्लक्ष पीयुक्षाभ्यो वनस्य २/3/६६ नि२ , प्र, अग्रो, (११८) वर्ष-क्षर-वरा-ऽप्-सरः शरारो-मनसा-जे | अन्त२ , खदिर, काश्य', आम्र, शर, इक्षु, प्लक्ष, पीयुक्षा पछी भावसा वन न न न णू थाय छे. निर+वनम्3/२/२६ वर्ष', क्षर, वर, अप् , सरस् , शर, उरस् भने मनसू ५७ मावेक्षा उत्त२५६मां ज हायता सप्तमान। | निवणम् - निट 4.1, प्रवणम्-८ वन, अग्रवणम्= લેપ વિકલ્પ થાય છે. दनना भयभाग अन्तर्वणम पननीम-२, खदिरवणम् मनसि + जः = मनसिजः पक्षे मनोजः = महेव | - मेनुन, काश्य वणम्-सागनु वनवगेरे [२१८] सरसि+जः सरसिजम् पक्षे सराजम् = मग [२१3] [५१४] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200