Book Title: Aarya Sthulbhadra Author(s): Jain Education Board Publisher: Jain Education Board View full book textPage 6
________________ आर्य स्थूलभद्र शकडाल ने राजसभा में प्रवेश कर महाराज को प्रणाम किया। दोनों बालकों ने भी प्रणाम कियामैं कल्पकवंशीय महामंत्री शकडाल पुत्र प्रियंकर महाराज को प्रणाम करता हूँ। राजा ने हँसकर कहा तभी तो इतने स्थूल (मोटे) हो गये हो। मेरा नाम श्रीयंकर है, मेरा प्रणाम स्वीकारें। वाह ! बड़े सुन्दर और संस्कारी हैं दोनों) बालक । इसकी स्थूलता भी बड़ी भद्र (अच्छी), लगती है। क्यों, मंत्रीवर ! राजा ने प्रियंकर 2 पास बुलाकर सिर पर हाथ फिराया। उसका सुन्दर स्थूल शरीर देखकर राजा को मजाक सूझा - M क्या खाते हो nnunic वत्स ! तभी तो घर पर सब इसको स्थूलभद्र कहते हैं। माता के हाथ के मोदक | हम भी तुम्हें स्थूलभद्र कहें? महाराज की जैसी इच्छा ! | इसके पश्चात् महाराज ने दोनों बालकों को अनेक प्रकार के उपहार आदि देकर विदा किया।Page Navigation
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