Book Title: Aarya Sthulbhadra
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 12
________________ नारी का भय दूर करने के लिए नारी का सम्पर्क जरूरी है वत्स आर्य स्थूलभद्र मैंने सोचा है इसे कुछ दिन चाणक्य हँसारूपकोशा के पास रखा जाए। तात ! ठीक है-कण्टकेनैव वह नीति, कला, चतुरता ( कंटकम्। काँटे से ही काँटा निकलता सब में पारंगत है। है। परन्तु कभी-कभी काँटा घाव भी कर देता है। कुछ देर एकान्त में चाणक्य के साथ बातचीत करके दोनों भवन में आ गये। अच्छा, तुम खूब जानते । हो उसे। देखा है उसे? प्रातःकाल स्थूलभद्र के साथ नाश्ता करते समय चाणक्य ने कहाप्रियंकर ! रात वहाँ जिस नर्तकी का नृत्य हो रहा था। वह कोई सामान्य नर्तकी नहीं है। मगध क्या पूरे पूर्व भारत में उसकी जोड़ी की दूसरी नर्तकी नहीं है। रूपकोशा नाम है उसका। सूचिका नृत्य तो केवल आम्रपाली ही करती थी। विद्वान् चर्मचक्षु से नहीं, ज्ञान चक्षु से देखते हैं। रूपकोशा १८ प्रकार के नृत्य और ७ प्रकार के संगीत जानती है। अनेक देशों की भाषा और कला भी। वह आजकल सूचिका नृत्य सीख रही है।

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