Book Title: Aarya Sthulbhadra
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 30
________________ ITITMILINOTE आर्य स्थूलभद्र तभी यक्षा वहाँ आई-तात ! सात दिन बीत स्थूलभद्र कुछ भी नहीं बोले। यक्षा की आँखों में झाँकने लगे। दोनों की चुके हैं। आप निराहार आँखें डबडबा आईं। कुछ देर मौन रहने के पश्चात् यक्षा ने कहाअकेले बैठे हैं, अब शोक | तात ! पिताश्री के निवृत्ति करो। सामने ही हम सातों बहनों ने संयम दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की थी। अब आप अनुमति दीजिए। OD स्थलभद्र ने श्रीयक की तरफ संकेत कियाaunty श्रीयक ! सुनो श्रीयक ! सुनो, यक्षा क्या कह रही है? PVTO तात ! पिताश्री ने ही अपने अन्तिम समय में मुझे कहा था इनका दीक्षा | महोत्सव धूमधाम से करना। स्थूलभद्र गहरे विचारों में डूब गये मेरे से छोटी बहनें संसार से | विरक्त होकर संयम के कठोर मार्ग पर चलना चाहती हैं और मैं विषय वासना यILM के दलदल में कंठ तक डूबा हुआ हूँ। धिक्कार है मुझे। Do696020PPORA

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