Book Title: Aarya Sthulbhadra
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 10
________________ आर्य स्थूलभद्र स्थूलभद्र आश्चर्य से देखता है- मुझे क्या लेना-देना है मित्र, ये पौरजन /मित्र, कुएँ के मेंढक हो। इनसे। परन्तु तुम तो किसके विषय में तुम। कुछ भी मालूम | ऐसे कह रहे हो, जैसे बात कर रहे हैं? नहीं तुम्हें, पाटलिपुत्र में सबकुछ जानते हो? क्या-क्या आश्चर्य है? क्यों नहीं, देखो यह राजनर्तकी सुनन्दा का भव्य भवन है। शरद् पूर्णिमा का त्रिदिवसीय उत्सव चल रहा है। उसकी पुत्रियाँ रूपकोशा और चित्रलेखा मगध की सर्वश्रेष्ठ नर्तकियाँ हैं। उन्हीं के विषय में नगर जन चर्चा कर रहे हैं। Our DOWTOONITORIMATERI ECOOOOOOK000 स्थूलभद्र (उपेक्षापूर्वक) भाई राग-द्वेष से तो मन दुःखी ही होता है। वीतरागी ही सुखी रहता है। होगा उत्सव ! होगी नर्तकियाँ, हमें क्या मतलब है। कोई नाचे, कोई उछले। बड़े वीतरागी बने रहते हो तुम प्रियंकर। स्थूलभद्र की बात सुनकर चाणक्य हँस जाता है। वह सोचने लगा इस भरी जवानी में (भी इसे संसार का कोई अनुभव नहीं, कोई रस नहीं। कैसा नीरस है यह। युवा होकर नारी सौन्दर्य के प्रति कोई आकर्षण नहीं। मध्य रात तक नगर भ्रमण करके दोनों अपने भवन में आकर सो गये।

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