Book Title: Aarya Sthulbhadra
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ आर्य स्थूलभद्र अगले दिन चाणक्य प्रातः उठा और अपने नित्य कर्म व पूजा-पाठ की। तैयार होकर वह भवन से बाहर निकला तो उसकी भेंट महामंत्री शकडाल से होगईपूज्य पिताश्री आयुष्मान् भव ! वत्स, प्रणाम। Aआज अकेले ही कैसे? पिताश्री, प्रियंकर अभी सोशरद उत्सव का नृत्य रहा है। रात को नगर | नहीं देखा? कल तो A भ्रमण करके विलम्ब रुपकोशा ने भी बड़ा से आये थे। अद्भुत नृत्य किया। बताते हैं। देखता कैसे? मेरे साथ तो यह वैरागी बंधु था। इसे नृत्य, सौन्दर्य में कोई भी रुचि नहीं है। थकडाल एकदम गंभीर हो गया। चाणक्य का हाथ पकड़कर एकान्त में ले गयाइधर आओ वत्स तुमसे एक विशेष मंत्रणा करनी है स्थूलभद्र अठारह वर्ष का युवक हो गया है। विद्वान् और धर्मज्ञ भी है। परन्तु संसार के ॥ विषय में आज भी पाँच वर्ष का बालक है। पिताश्री, मैं भी कई बार उससे | यही तो चिन्ता का छेड़छाड़ करता हूँ परन्तु पता विषय है। यदि यह नहीं वह किस मिट्टी का बना। इसी प्रकार नारी से है, नारी का नाम लेते ही तो डरता रहा तो संसार उसे घृणा हो जाती है। कैसे चलेगा? तात ! आप तो पिता भी हैं और गुरु भी, आप ही बताइए क्या किया जाय?

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38