Book Title: Aarya Sthulbhadra
Author(s): Jain Education Board
Publisher: Jain Education Board

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Page 26
________________ आर्य स्थूलभद्र और वह सीधा राजसभा के लिए चल पड़ा। और 'खटाक' पिता की गर्दन उड़ा दी। खून के राजसभा में प्रवेश करते शकडाल ने महाराज फव्वारे छुट गये। सभा में हा-हाकार मच गया। धननन्द को प्रणाम करने के लिए सिर झुकाया। राजा नन्द ने उत्तेजित होकर कहापीछे खड़े श्रीयक ने तलवार का प्रहार किया श्रीयक ! यह क्या (हे प्रभु ! | किया तुमने ! अपने मुझे माफ निर्दोष पिता की हत्या .....। कर देना। DAR श्रीयक ने खून से सनी तलवार राजा के सामने रख दी और बोला क्या वास्तव महाराज ! आपकी दृष्टि में शकडाल में जो राजद्रोही है, वह चाहे राजद्रोही पिंता हो, मैं उसे जीवित नहीं छोड़ता। V नहीं, मेरे पिता महान् स्वामिभक्त | थे, परन्तु आपने उनकी स्वामिभक्त पर सन्देह किया है, आपने उन्हें राजद्रोही मान लिया, इसीलिए मैंने उनको....। थे? ww श्रीयक फूट-फूटकर रोने लगा।

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