Book Title: Aarahana Panagam
Author(s): Hemsagarsuri, Hemlatashreeji, Ikshitagnashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabh
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आराहणापणगं (४) पारद्धिएण पहओ णट्ठो सरसल्लवेयणायिल्लो । ण य तं मओ ण जीओ मुच्छामोहं उवगओ सि ||१७३|| दद्गुण पदीवसिहं किर एयं णिम्मलं महारयणं । 'गेण्हामि' त्ति सयण्हं पयंगभावम्मि दड्ढो सि ||१७४|| बडिसेण मच्छभावे, गीएण मयत्तणे विवण्णो सि । गंधेण महुयरत्ते बहुसो रे ! पाविओ मरणं. ॥१७५|| किं वा बहुएण भणिएण ? जाई जाइं जाओ अणंतसो एक्कमेक्कभेयाए । तत्थ य तत्थ मओ हं अब्बो ! बालेण मरणेणं ॥१७६|| णरयम्मि जीव ! तुमए णाणादुक्खाइं जाइं सहियाइं। एण्हि ताई सरंतो विसहेज्जसु वेयणं एयं ॥१७७|| करवत्त-कुंभि-रुक्खे सिंबलि-वेयरणि-बालुयापुलिणे | जइ सुमरसि एयाइं ता विसहसु वेयणं एयं ॥१७८|| तेत्तीससागराइं णरए जा वेयणा सहिज्जंति । ता कीस खणं एकं विसहामि ण वेयणं एवं ||१७९|| देवत्तणम्मि बहुसो रणंतरसणाओ गुरुणियंबाओ । मुक्काओ देवीओ मा रज्जसु असुइणारीसु ॥१८०||

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