Book Title: Aahar Aur Aarogya
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 44
________________ (४२) ही होते थे, लेकिन आधुनिक युग में रसोईघर भी विभाजित हो गया- १. किचिन और २. डाइनिंग रूम के रूप में । किचिन वह स्थान, जहाँ भोजन बनाया जाता है और डाइनिंग रूम, जहाँ घर के सदस्य अपने अतिथियों, मित्रों आदि के साथ बैठकर भोजन् करते हैं । जहाँ तक स्वच्छता का प्रश्न है, वह तो प्रत्येक रसोईघर में रखी ही जाती है, यहाँ तक कि होटलों में भी स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है । जैन रसोईघर अथवा किचिन में भी स्वच्छता तो रखी ही जाती है । साथ ही कुछ ऐसी विशेषताएँ भी हैं, जो अन्यत्र नहीं मिलतीं । जैन आहार की सबसे पहली विशेषता है - विशुद्धता । विशुद्धता से यहाँ पर चार प्रकार की विशुद्धि अपेक्षित है १. खाद्य-पदार्थ- शुद्धि - भोजन के पदार्थ जैसे - दाल, चावल आदि शुद्ध हों, अच्छी

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