Book Title: Aahar Aur Aarogya
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 52
________________ (५0) छने पानी के साथ ही यदि प्रासुक पानी (उष्णजल) की परम्परा का निर्वाह किया जाय तो संभवतः अनेक उदर सम्बन्धी रोग अपने आप खत्म हो जायेंगे । बड़े शहरों में डाक्टर लोग वौयल वाटर (उबला जल) पीने की सलाह देते हैं । भारत में आने वाले विदेशी प्रायः मिनरल वाटर पी के रहते हैं, इसलिए कि अशुद्ध अनछने जल के द्वारा पेट में अनेक प्रकार के कीड़े-जन्तु चले जाते हैं । इसलिए जितना ध्यान अभक्ष्य पदार्थ पर दिया जाता है, उतना ही अपेय, अशुद्ध जल पर भी देना चाहिए, इससे हिंसा से भी बचाव होगा और अनेक खतरनाक बीमारियों से भी बचा जा सकेगा। दिवा भोजनः प्राचीन काल से जैनत्व के दो प्रमुख व्यावहारिक लक्षण रहे हैं-सभी कार्यों में छने पानी का उपयोग करना और दिन में ही अर्थात् सूर्य डूबने से पहले ही भोज्य और

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