Book Title: Aagam Manjusha 45 Chulikasuttam Mool 02 Anuogdaaram
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 3
________________ नाणं पंचविहं पणतं, तंजहा-आमिणिचोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपजवनाणं केवलनाणं । १। तत्थ चत्तारि नाणाई ठप्पाई ठवणिजाई जाजतुषागारपूनमणो उहिसं(दिसिजतिणो समुदिसं(सिज)ति णो अणुष्णविनंति, सुयनाणस्स उद्देसो समुदसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ।२।जसुयनाणस्स उदेसी समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तद किं अंगपविट्ठस्स उहेसो समुदेसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ?, किं अंगवाहिरस्स उदेसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ?, अंगपविट्ठस्सवि उद्देसो जाव पवत्तइ, अणंगपविगुस्सवि उसो जाव पवत्तइ , इमं पुण पट्ठवणं पडुच अणंगपविट्ठस्स अणुओगो०।३। जइ अणंगपविट्ठस्स अणुओगो किं कालियस्स अणु ओगो ? उकालियस्स अणुओगो ?, कालियस्सवि अणुओगो उकालियस्सवि अणुयोगो, इमं पुण पट्ठवणं पडुच उकालियस्स अणुओगो।४। जइ उक्कालिअस्स अणुओगो कि आप स्सगस्स अणुजोगो? आवस्सगवतिरित्तस्स अणुओगो ?, आवस्सगस्सवि अणुओगो आवस्सगवतिरित्तस्सवि अणुओगो, इमं पुण पट्टवणं पडुच आवस्सगस्स अणुओगे।५। जह आवस्सगस्स अणुओगो कि अंग अंगाई सुअसंघो सुअखंधा अज्झयण अज्झयणाई उद्देसो उद्देसा?, आवस्सयं णं नो अंग नो अंगाई सुअखंधो नो सुअखंधा नो अज्झयणं अज्झय. गाई नो उद्देसो नो उदेसा । ६। तम्हा आवस्सयं निक्सिविस्सामि सुर्य निक्सिविस्सामि खंघ निक्सिविस्सामि अज्झयणं निक्सिविस्सामि । ७। 'जत्य य ज जाणेजा निक्सेवं नि. क्खिवे निरवसेसं । जत्थविय न जाणेजा चउकगं निक्खिवे तत्थ ॥१॥ से किं तं आवस्सयं?,२ चउविहं पं० तं० नामावस्सर्य ठवणावस्सयं दव्वावस्सयं भावावस्सयं । ८ासे किंत नामावस्सय?, जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा आवस्सएत्ति नाम कलइ, सेतं नामावस्सयं ।९। से किं तं ठवणावस्सयं ?, २ जणं कट्ठकम्मे वा पोस्थकम्मे वा चित्तकम्मे पा सेप्पकम्मे वा गंधिमे वा वेदिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अणेगो सम्भावठवणाए वा असम्भावठयणाए वा आवस्सएत्ति ठवणा ठविजइ, से तं ठवणावस्सयं ।१०। नामट्ठवणाणं को पइविसेसो ?, णाम आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा । ११ । से किं तं दशावस्सय १,२ दुविहं पं० त०- आगमओ य नोआगमओ य।१२स से किं तं आगमओ दवावस्सय?,२ जस्स णं आवस्सएत्ति पदं सिक्खितं ठितं जितं मितं परिजितं नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणचक्खरं अबाइक्खरं अक्सलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुणं पडिपुण्णघोसं कंठोड(दोस)विप्पमुकं गुरुवायणोवगर्य, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियहगाए धम्मकहाए, नो अणुपेहाए, कम्हा?, 'अणुवओगो दच 'मितिकटु ।१३। नेगमस्स एगो अणुक्उत्तो आगमओ एग दवावस्सयं दोण्णि अणुक्उत्ता आगमओ दोण्णि दबावस्सयाई तिण्णि अणुवउत्ता आगमओ तिष्णि दशावस्सयाई एवं जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइयाई दवावस्सयाई, एवमेव ववहारस्सवि, संगहस्स णं एगो वा अणेगा वा अणु. उत्तो वा अणुक्उत्ता वा आगमओ दवावस्सयं वा दशावस्सयाणि वा से एगे दवावस्सए, उजुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमतो एग दवावस्सयं, पुहुत्तं नेच्छइ, तिहं (३२७) १३०८ अनुयोगद्वारसूत्रं - मुनि दीपरत्नसागर II

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