Book Title: Aagam Manjusha 45 Chulikasuttam Mool 02 Anuogdaaram
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
View full book text ________________
उक्कोसेणवि अंतो०, पजत्तयगम्भवक्कैतियभुयपरिसप्पथलयरपंचिदिय जाच गो०! जह• अंतो० उक्को पुषकोडी अंतोमुहलूणा, खहयरपंचिंदिय जाव गो०! जह• अंतो उक्कोः पलिओवमस्स असंखेजइभागो, समुच्छिमखयरपंचिदिय जाव गो०! जह० अंतो उक्को० बावत्तरि वाससहस्साई, जपजत्तगसमुच्छिमखहयरपंचिंदियपुच्छा, गो०! जह० उक्को अंतो०. पजत्तगसमुच्छिमसहयरपंचिंदिय जाब गो! जहन्नेणं अंतो उक्कोवावतार बाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई, गम्भवक्कंतियखहयर० जाच गो०! जह• अंतो० उक्को० पलिओवमस्स असंखेजइभागो, अपजत्तगगम्भवतियखयर जाच गो! जहण्णेणवि उको अंतो०, पजत्तग० खहयरपंचिदियति. रिकल जोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई ५०, गो! जह० अंतो उनको पलिओवमस्स असंखिजइभागो अंतोमुत्तूणो, एत्व एएसिंणं संगहणिगाहाओ भवंति तंजहा-समुच्छिम पुषकोडी चउरासीई भवे सहस्साई। तेवण्णा बायाला बावत्तरिमेव पक्खीणं ॥१११॥ गम्भंमि पुषकोडी तिषिण य पलिओवमाई परमाऊ। उरग भुञ पुच्चकोडी पलिओवमऽसंखभागो अ॥२॥ मणुस्साणं भंते ! फेवइयं० पं०?, गो०! जह• अंतो उक्को तिग्णि पलिओ. वमाई. समुच्छिममणुस्साणं जाव गो० ! जहण्णेण उक्को० अंतो०, गम्भवक्कंतियमणुस्साणं जाव गो०! जह• अंतो० उक्को तिषिण पलिओवमाई, अपजत्तगगम्भ०मणुस्साणं भंते ! केवइ० ५०?, गो ! जह• उस्को अंतो०, पज्जत्तगगभ०मणुस्साणं भंते ! केवइ०१, गो०! जह० अंतो० उक्को तिषिण पलि० अंतोमुहुत्तूणाई, वाणमंतराणं देवाणं केवइ०१, गो! जह० दस वाससहस्साई उक्को पलिओचम, याणमंतरीणं देवीणं भंते! केव०?, गो०! जह दस बाससहस्साई उक्को अद्धपलिओचम, जोइसियाणं भंते ! देवाणं केवइ०१, गो०! जह• सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं उक्को० पलिओवमं वाससयसहस्समम्महियं, जोइसियदेवीणं भंते ! केवइ०?, गो०! जहनेणं अट्टभागपलिओवमं उकोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अभाहियं, चंदविमाणाणं भंते ! देवाणं केव०, गो०! जह० चउभागपलिओवम उक्को० पलिजओचमं वाससयसहस्समभहियं, चंदविमाणाणं भंते! देवीणं?, गो०!
सेहिं अमहियं, सरविमाणाणं भंते ! देवाणं०१, गो० जहचउभागपलिओवर्म उक्को० पलिओवमं वाससहस्समम्भाहियं, सरविमाणाणं देवीणं०१. गो० जह. चउभागपलिओचमं उक्को अदपलिओवम पंचहिं वाससएहिं अमहियं, गहविमाणाणं देवाण०१, गो०! जहः चउभागपलिओवम उक्को० पलिओचम, गहविमाणाणं भंते ! देवीण०१, गो०! जह० चउभागपलिओचमं उक्को अदपलिओवमं, णक्वत्तविमाणाणं भंते ! देवाणं०?, गो०! जह० चउभागपलिओवमं उक्को अद्धपलिओवम, णक्खत्तविमाणाणं भंते ! देवीणं०?, गो०! जह० चउभागपलिओवमं उक्को० सातिरेग चउभागपलिओचम, ताराविमाणाणं भंते!०?, गो०! जह• साइरेगं अट्ठभागपलिओचमं उक्को० चउभागपलिओवम, ताराविमाणाणं देवीणं भंते ! केवइयं०१, गो०! जह० अट्ठभागपलिओवम उको साइरेग अट्ठभागपलिओवर्म, वेमाणियाणं भंते ! देवाणं केव० पं०?, गो०! जह० पलिओवर्म उक्को० तेत्तीस सागरोदमाई, वेमाणियाणं भंते ! देवीणं केवह० ५०१, गो०! जह० पलिओवम उको पणपणं पलिओवमाई, सोहम्मे णं मंते ! कप्पे देवाण ०?, गो० जह० पलिओवमे उनको दो सागरोक्माई, सोहम्मे णं भंते ! कप्पे परिग्गहियादेवीण ०१, गो०! जह० पलिओवमं उनको सत्त पलिओक्माई, सोहम्मे णं भंते ! अपरिग्गहिआदेवीणं के०१, गो०! जह० पलिओवर्म उको० पण्णासं पलिओचमाई, ईसाणे गं भंते ! कप्पे देवाण०१, गो०! जह• साइरेगं पलिओवमं उक्को साइरेगाई दो सागरोदमाई, ईसाणे णं मंते! कप्पे परिग्गहिआदेवीणं के०?, गो०! जह० साइरेग पलिओवम उक्को नव पलिओषमाई, अपरिग्गहियादेवीणं०१, गो! जहरू साइरेग पलि० उक्को० पणपण्णं पलिओवमाई, सणकुमारे गं भंते ! कप्पे देवाणं०?, गो०! जह० दो सागरोवमाई उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई, माहिदेणं भंते ! कप्पे देवाण०१, गो०! जह साइरेगाई दो सागरोचमाई उक्को साइरेगाई सत्त सागरोवमाई, बंभलोएणं मंते ! कप्पे देवाणं०१, गो०! जह सत्त सागरोबमाई उक्को० दस सागरोवमाई, एवं कप्पे कप्पे केवइ० पं०?, गो०! एवं भाणियवं-लंतए जह० दस सागरोवमाई उनको चउदस सागरोवमाई, महासुके जहरू चउद्दस सागरोवमाई उक्को सत्तरस सागरोवमाई, सहस्सारे जह सत्तरस सागरोवमाई उक्को अट्ठारस सागरोवमाई, आणए जह अट्ठारस सागरोवमाई उको एमृणवीसं सागरोचमाई, पाणए
सा० उकको एककवीसं सागरोवमाई, अबुए जहएककवीसं सागरोवमाई उकको बावीसं सागरोवमाई, हेडिमहेछिमगेविजविमाणेसु णं भंते ! देवाण केवइ?, मो०! जह० बावीसं सागरोवमाई उक्को० तेवीसं सागरोबमाई, हेडिममज्झिमगेकेजविमाणेसु णं भंते! देवाणं केव०?, गो०! जह० तेवीसं सागरोवमाई उक्को० चउबीसं सागरोवमाई, हेहिमउवरिमगेवेजबिमाणेसुणं भंते ! देवाणं०१, गो०! जह० चउवीसं साग० उको० पंचवीसं साग०, मज्झिमहेडिमगेवेजविमाणेसु केव०?,जह पणवीसं सागरोवमाई उक्को० छबीस सागरोवमाई, मज्झिममज्झिमगेवेजविमाणेसुणं भंते ?, गो! जहः छत्रीसं सागरोवमाई उक्को सत्तावीसं सागरोबमाई, मज्झिमउवरिमगेवे ?, गो०! जह० सत्तावीसं सा० उक्को० अट्ठावीसं०, उवरिमहेडिमगेवि० देवाणं०?, गो०! जह• अट्ठावीसं सा० उक्को एगृणतीसं सागरोवमाई, उपरिममज्झिमगे. बिजविमाणेसु णं भंते ! देवाणं०?, गो०! जह० एगणतीसं सागरोक्माई उक्को तीसं सागरोवमाई, उवरिमउवरिमगेवेजविमाणेसुणं भंते! देवाणं०?, गो०!जह तीसं सागरोवमाई उक्को एक्कतीसं सागरोदमाई, विजयवेजयं. तजयंतअपराजितविमाणेसु णं भंते! देवाणं केवइ०?, गो० जहण्णेणं एकतीसं सागरोवमाई उक्को० तेत्तीस सागरोवमाई, सबट्टसिद्दे णं भंते! महाविमाणे देवाणं केवइ०?, गो! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोक्माई, से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे, से तं अद्यापलिओवमे । १३९। से किं तं खेत्तपलिओवमे १,२ दुविहे पं० त०-सुहुमे य वावहारिए य, तत्थ णं जे से सुहुमे से ठप्पे, तत्य णं जे से वावहारिए से जहानामए पाड़े सिआ जोयणं आयामविक्खंभेणं जोयणं उन्हेणं तं तिगुणं सविसेस परिक्खेवणं, से णं पाहे एगाहियवेआहियतेआहियजावभरिए बालम्गकोडीणं, तेणं वालम्गा णो अम्गी रहेजा जाव णो पइत्ताए हवमागच्छेजा, जे णं तस्स पाइरस (३३२) १३२८ अनुयोगद्वारसूत्रं -
मुनि दीपरबसागर
Loading... Page Navigation 1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32