Book Title: Aagam 45 ANUYOGDWAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 448
________________ आगम अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:) ...... मूलं [१४६-१४७] / गाथा ||११५-११८|| (४५) प्रत सूत्रांक अनुयो मलधारीया । [१४६-१४७] ॥२२२॥ - नविशुख्यमानकभेदाद्विधैव, तत्र श्रेणिमारोहतो विशुध्यमानकमुच्यते, ततः प्रच्यवमानस्य सलिश्यमान- वृत्तिः कमिति । 'अहक्खायंति अथशब्दोऽत्र याथातथ्ये आङभिविधौ आ-समन्ताद्याथातथ्येन ख्यातमथाख्यातं उपक्रमे कषायोदयाभावतो निरतिचारत्वात् पारमार्थिकरूपेण ख्यातमधाख्यातमित्यर्थः, एतदपि प्रतिपात्यप्रतिपाति-प्रमाणद्वार भेदात् द्वेधा, तत्रोपशान्तमोहस्य प्रतिपाति क्षीणमोहस्य त्वप्रतिपाति, अथवा केवलिनश्छद्मस्थस्य चोपशा-14 तमोहक्षीणमोहस्य तद्भवत्यतः खामिभेदाद् द्वैविध्यमिति । तदेतचारित्रगुणप्रमाणं, तदेतज्जीवगुणप्रमाणं, तदेतद्गुणप्रमाणमिति ॥१४७॥ तदेवं जीवाजीवभेदभिन्नं गुणप्रमाणं प्रतिपाद्य क्रमप्रासं नयप्रमाणं प्रतिपादयन्नाह से किं तं नयप्पमाणे ?, २ तिविहे पण्णत्ते, तंजहा-पत्थगदिटुंतेणं वसहिदिढतेणं पएसदिटुंतेणं । से किं तं पत्थगदिटुंतेणं?, २ से जहानामए केई पुरिसे परसुं गहाय अडवीसमहुत्तो गच्छेज्जा तं पासित्ता केई वएजा-कहिं भवं गच्छसि ?, अविसुद्धो नेगमो भणइ-पत्थगस्स गच्छामि, तं च केई छिंदमाणं पासित्ता वएजा-किं भवं छिंदसि ?, ॥२२२॥ विसुद्धो नेगमो भणइ-पत्थयं छिंदामि, तं च केई तच्छमाणं पासित्ता वएजा-किं - गाथा: ||-|| दीप अनुक्रम [३०० -३०९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति: ~447~

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