Book Title: Aagam 45 ANUYOGDWAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 475
________________ आगम (४५) अनुयोगद्वार”- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:) मूलं [१५०] / गाथा ||११९-१२२|| प्रत सूत्रांक [१५०] गाथा: ||-|| इआणं सलागाणं असंलप्पा लोगा भरिआ तहावि उक्कोसयं संखेजयं न पावइ, जहा को दिटुंतो?, से जहानामए मंचे सिआ आमलगाणं भरिए तत्थ एगे आमलए पक्खित्ते सेऽवि माते अण्णेऽवि पक्खिते सेऽवि माते अन्नेऽवि पक्खित्ते सेऽवि माते एवं पक्खिप्पमाणेणं २ होही सेऽवि आमलए जंसि पक्खित्ते से मंचए भरिजिहिइ जे तत्थ आमलए न माहिइ: तत्र कियत्पुनरुत्कृष्ट सहायकं भवतीति विनेयेन पृष्टे विस्तरेण तस्य प्ररूपयिष्यमाणत्वादित्यमाह-उत्कृष्टस्य सङ्ख्येयकस्य प्ररूपणां करिष्यामि, तदेवाह-तद्यथा नाम कश्चित्पल्यः स्यात्, कियन्मान इत्याह-आयामविष्कम्भाभ्यां योजनशतसहस्रं, परिधिना तु-परिही तिलकख सोलस सहस्स दो य सय सत्तवीसहिया। कोसतिय अट्ठवीसं, धणुसय तेरंगुलद्धहियं ॥१॥ इति गाधाप्रतिपादितमानो, जम्बूद्वीपप्रमाण इति भावः। अयं चाधस्ताद्योजनसहस्रमवगाढो द्रष्टव्यः, रत्नप्रभावृथिव्या रत्नकाण्डं भित्त्वा वज्रकाण्डे प्रतिष्ठित इत्यर्थः, स चैवंप्रमाणः पल्यो जम्बूद्वीपवेदिकात उपरि सपशिखः सिद्धार्थानां सर्षपानां भ्रियते, 'तओ णं तेहिं मित्यादि, इदमुक्तं भवति-ते सर्षपा असत्कल्पनया देवादिना समुत्क्षिप्य एको द्वीपे एकः समुद्रे इत्येवं सर्वे-IN १. परिधिनयो लक्षाः षोडश सहस्रा द्वे च शते सप्तविंशत्यधिके । कोशत्रिकमष्टाविंश धनुशतं श्रयोदशालानि अर्धाधिकानि ॥ १॥ दीप अनुक्रम [३११-३१७] JESH मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित........आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्ति: | अत्र मुद्रणदोषात् सूत्रक्रमांक १४९' स्थाने सूत्रक्रमांक १५०' इति मुद्रितं ~ 474~

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